
स्वतंत्रता की हीरक जयंती माह में जब पीछे पलटकर देखती हूँ तो तमाम सुनहरी स्मृतियाँ आँखों में तैरने लगती हैं। पढ़ाई, लिखाई, खेलकूद, घर-परिवार से जुड़ी बातों के साथ अचानक कोने में रखा रेडियो बज उठता है। जहाँ सुबह का स्वागत प्रार्थना से होता है। फिर जैसे सूरज का उजाला झिर्री से आती एक किरण के साथ धीरे-धीरे खिड़कियों से उतर सारे घर में पसर जाता, वैसे ही इसके कार्यक्रम आगे बढ़ते। हिंदी, संस्कृत, अंग्रेज़ी समाचारों के बाद सुगम संगीत और फिर फ़िल्मी गाने। इसमें सुबह कभी शोरगुल से प्रारंभ नहीं होती थी, नेपथ्य में संगीत भी बजता तो सितार या शहनाई की मधुर धुन मुंडेर पर बैठी चिड़िया की चहचहाहट में घुल जाती। कुल मिलाकर आकाशवाणी की आवाज़ें हमारी दिनचर्या की गति के साथ ही चला करतीं थीं।
फिर 'इडियट बॉक्स' आया ...
प्रीति अज्ञात