अनिश्चितता से भरे जीवन में दुख क्यों बांटू?
वसीयत इसलिए लिख रही हूं, क्योंकि कोरोना की दूसरी लहर का क़हर थमने का नाम ही नहीं ले रहा है. ये कोई डरने या डराने का प्रयोजन नहीं है. हालात सबके सामने हैं. कोई दिन ऐसा नहीं जाता जब किसी के निधन का समाचार न मिलता हो. शायद ही कोई ऐसा घर होगा, जहाँ कोविड ने किसी को चपेट में न लिया हो. मेरे आसपास, परिवार, मित्र सभी की यही कहानी है. किसी का कोई अपना जूझ रहा है तो कहीं, कोई अलविदा कहे बिना चला गया. हर दिन एक आशंका में बीतता है कि वो जो अपनी साँसों के लिए लड़ रहा है, वो घर तो आ जाएगा न! उसे समय पर सही उपचार मिल जाएगा न! कहीं आज भी तंत्र की बलि तो न चढ़ जाएगा कोई! स्वयं को इतना लाचार और विवश पहले कभी भी न महसूस किया था.
ये भय इतना गह...
प्रीति अज्ञात