अब हमें आँखों की भाषा सीखनी होगी!
उन दिनों जब Covid-19 का प्रकोप चीन से प्रारम्भ हो; यूरोपीय देशों में अपना असर दिखा रहा था, हम भारतवासी स्वयं के लिए कुछ हद तक निश्चिन्त थे। हमारा जीवन सामान्य था। देशभर में आवाजाही जारी थी। न जाने कब यह वायरस हवाई रास्ते से हमारे देश आ पहुँचा और अब तक लाखों लोग इसके शिकंजे में फँस चुके हैं। ठीक होने वालों का अनुपात भले ही अधिक है लेकिन मृत्यु के आँकड़े बेहद भयावह हैं। उस पर WHO से मिलने वाली सूचनाएँ हर बार एक नए संशय को जन्म दे रही हैं।
बहरहाल इतना तो तय हो चुका है कि हमें अपनी सुरक्षा के लिए किसी के भरोसे नहीं बैठना है! हमारी सलामती के लिए इस समय मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग ही एकमात्र उपाय है।
कहते हैं 'आवश्यकता ही अविष्कार की जननी है' एक ओर तो कोरोना ...
प्रीति अज्ञात