कर्म, धर्म और शर्म के बदलते मर्म
अयोध्या विवादित भूमि मामले में उच्चतम न्यायालय का निर्णय आ जाने के पश्चात् जब सरकार ने अपनी पीठ थपथपा शाबाशी समेटनी प्रारंभ कर दी थी और मंदिर के पहले से ही तैयार नक़्शे चैनलों पर रंग बिखेरने लगे थे; तब आम आदमी ने यह सोच चैन की साँस ली कि चलो, आस्था की चाशनी से लबरेज़ वर्षों से चला आ रहा विवाद अंततः शांतिपूर्ण ढंग से सुलझ गया। यद्यपि कुछ लोग इस निर्णय से प्रसन्न नहीं हैं और कुछ वहाँ विद्यालय, अस्पताल बनवाने की माँग कर रहे हैं। लेकिन अब इतने वर्षों से खींचे जा रहे इस मामले को देखने वाला प्रत्येक भारतीय अच्छे से समझने लगा है कि राजनीति, आस्थाओं को स्वहित में भुनाने में अधिक विश्वास रखती है तथा शिक्षा और व्यवस्था से उसका सरोकार जरा कम ही रहता है फिर चाहे वह ...
प्रीति अज्ञात