हिन्दी हैं हम, वतन है हिन्दोस्तां हमारा: भाषा, क्लिष्टता और ककहरा
हिन्दी हैं हम, वतन है हिन्दोस्तां हमारा: भाषा, क्लिष्टता और ककहरा
'भाषा' क्या है और 'साहित्यिक भाषा' इससे कितनी अलग होनी चाहिए, इस बात पर बुद्धिजीवी कभी भी एकमत नहीं हो पाते। पूरी तरह से किसी एक पक्ष का समर्थन करने में उनका संकोच स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है। कुछ भाषाई क्लिष्टता को ही साहित्यिक रचना की प्रथम गुणवत्ता मानते हैं जबकि कुछ इससे भिन्न सोच रखते हैं। इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि आम पाठक के लिए कठिनता, काव्य की सरसता में बाधा पैदा करती है। भाषा वही हो, जो अभिव्यक्ति में रुकावट न डाले। सरल, सहज भाषा यदि जनमानस के हृदय को सीधे-सीधे छू जाती है, तो इसका एकमात्र कारण यही है, कि ये न सिर्फ़ आसानी से समझ में आ...
प्रीति अज्ञात