यही वो समय है....जब बोलना आवश्यक है
इसमें कोई दो राय नहीं कि आतिशबाज़ी से वायु एवं ध्वनि प्रदूषण होता है। परेशानी इस मापदंड से है कि जो आज उचित नहीं, वह अन्य अवसरों पर कैसे सही मान लिया जाता है? शादियों के मौसम में जमकर आतिशबाज़ी होती है, नेताओं की जीत पर भी और हमारे खिलाड़ियों के अच्छे प्रदर्शन पर भी! तब इस प्रकार के विचार हमारे मस्तिष्क के द्वार क्यों नहीं खटखटा पाते?
दीवाली और आतिशबाज़ी एक-दूसरे के पूरक बन चुके हैं। फुलझड़ी, अनार सब पहचान हैं, दीपावली की! घर के कोने-कोने की सफाई करना, मिठाई और विविध प्रकार के पकवानों का बनना, नये वस्त्र खरीदना, पूजा-अर्चना करना, दीयों की रौशनी से घर को जगमग कर देने के बाद ये पटाखों का फोड़ना ही तो बच्चों को सबसे ज़्यादा आकर्षित करता आया है। पूजा के...
प्रीति अज्ञात