
वर्तमान समय में बिहार की शिक्षा-व्यवस्था का जो मखौल बन रहा, वह अत्यन्त चिंतनीय एवं निराशाजनक है। चिंता उनकी नहीं, जिन विद्यार्थियों को फर्ज़ी तरीके से टॉपर बनाया गया; बल्कि उनकी है जो ऐसे माहौल में भी पूरी ईमानदारी से अध्ययन कर अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होते आये हैं। इस सबके बीच उन जैसे न जाने कितने प्रतिभावान छात्र कुंठा के दौर से गुजर रहे होंगें, जब उनकी अंकसूची की ओर कई सशंकित नज़रें देखतीं होंगी। आखिर क्यों, वर्षों से हर राज्य के कई क्षेत्रों में योग्यता दूसरे पायदान पर खड़ी दिखती है और पहली सीढ़ी किसी ताक़तवर द्वारा हथिया ली जाती है?
यह हमारे देश का दुर्भाग्य है कि हर घटना को प्रांत से जोड़कर उस पर खुशहाल/बदहाल, रामराज्य/ जंगलराज का ठप्पा लगा दिया जाता है और फिर पक्ष/विपक्ष में आसीन...
प्रीति अज्ञात