गीत-गंगा
नवगीत-
हाथ ठिठुरे कुछ किया जाता नहीं,
पेट तो हड़ताल पर जाता नहीं।
रवि किरण शरमा रही है,
धूप भी ग़म खा रही है।
ठंड का कोड़ा सहा जाता नहीं,
हाथ ठिठुरे कुछ किया जाता नहीं।
गुंडई कुहरा दिखाता,
है अंधेरा उसे भाता।
दस कदम तक भी चला जाता नहीं,
हाथ ठिठुरे कुछ किया जाता नहीं।
शीत से सिकुड़ी हुई माँ,
दुहर कर गठरी हुई माँ।
गल रहा पानी छुआ जाता नहीं,
हाथ ठिठुरे कुछ किया जाता नहीं।
सुन्न-से हैं पेड़-पौधे,
मौन साधे घर-घरौंदे।
पंछियों का झुंड भी गाता नहीं,
हाथ ठिठुरे कुछ किया जाता नहीं।
किंतु पापी पेट का क्या,
सुबह खाया, शाम का क्या।
भूख से डटकर लड़ा जाता नहीं,
हाथ ठिठुरे कुछ किया जाता नहीं।।
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नवगीत-
रोकना है काम उनका,
पर हमारा काम चलना।
सूर्य बादल से डरे,
बादल लगे डरने पवन से।
पवन पर्वत से डरे,
पर्वत लगे डरने गगन से।
बस यही डर खत्म करना
है, हमारा काम उड़ना।
रोकना है काम उनका,
पर हमारा काम चलना।।
चींटिया दीवार के डर से,
कभी क्या रुक सकी हैं।
बंदिशों में क्या परिंदों की,
उड़ानें रह सकी हैं।
सर्जकों का काम ही है,
निर्बलों में प्राण भरना।
रोकना है काम उनका,
पर हमारा काम चलना।।
आस्तीनों में छिपे,
साँपों से रहना बेखबर मत।
मुश्किलें बढ़ती रहेंगीं,
फिर भी होना बेसबर मत।
ज़िंदगी की जंग में,
हर विघ्न-बाधा पार करना।
रोकना है काम उनका,
पर हमारा काम चलना।।
– अरविन्द अवस्थी