कविताएँ
तुम्हारे जाने के बाद
तुम्हारे जाने के बाद
कुछ नही बदला
बस बदल गया है
इस घर का मानचित्र
बदल गया
तुम्हारे कमरे का चश्मा
लेकिन नही बदला
तो मां के आंसू की लहर
पिता का अकेलापन, उदासी
तुम्हारे जाने के बाद
आज भी जीवित है
तुम्हारे यादों का कैलेंडर
जीवित है
वो पौधे
जिसको तुमने
आखिरी बार रोपा था
जीवित है
वो रास्ते
जिस पर तुम आखिरी बार
मुड़े थे
तुम मेरे नहीं हो
मरा है तुम्हारा स्थूल शरीर
तुम बस
यहीं आसपास हो
तुम जीवित हो
अंतरिक्ष की पुस्तकों में
तुम कहते थे
मुझे अंतरिक्ष यान बनना है
हां, तुम वही यान हो
जो चले गये अंतरिक्ष से परे
तुम्हारे जाने के बाद
सब कुछ बिखर गया है
बिखर गया
बूढ़े मां-बाप का कन्धा
लेकिन नहीं बिखरा तो
ईश्वर के विधि का विधान
जो सबकुछ देखता रहा
लेकिन अपने विधान को
न बिखेर सका।
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सुनो न!
सुनो न!
देखो तोड़ रहा हूं
फूल तुम्हारे ख्यालों का
मन की गहराइयों से
एक-एक फूल तुम्हारी यादोें का
रेशम-सा सुनहरा
जो तुमने दिया था
अब वो धागा न रहा
पहनोगी न तुम!
सुन रहा हूंँ
धुन तुम्हारी ख़ामोशी की
लबों पर जो सजी थी बांसुरी-सी
और घाव-सी तकलीफ देती
अदृश्य वायु से तुम्हारे शब्द जो
कहे ही नहीं गए
लिख रहा हूं एक गीत उनसे
एक नई सरगम गढ़ूंगा
सुनोगी न तुम!
सुनो न!
देखो चुन रहा हूं
फूल तुम्हारी मोहब्बत के
भर रहा हूं पोटली में
जो बीज बोया था
मन की कोरी माटी में
अंकुरित हो निकल आया है
कांटे भी है
रक्तिम लालिमा लिए
पर गूँथ डालूंगा इन्हें
मन की माला में
अपनाओगी न तुम!
– प्रभांशु कुमार