1. ये क्या हुआ जाता है
देख दुनिया को क्यूं हैरां हुआ जाता है
सोचा अनसोचा सब यहां हुआ जाता है
मिलती है नजर कोहसार की चोटी से
दरिया बहते बहते जवां हुआ जाता है
धूप सूख रही है मन की अलगनी पर
बारिश का ये मौसम धुआं हुआ जाता है
तुम्ही तो थे मेरे यकीनो सब्र की इंतिहा
एक शुब्हा नया नया निहां हुआ जाता है
पीपल के पेड़ पर चिड़ियों का बसेरा है
जिंदगी का नग्मा यूं बयां हुआ जाता है
हमने माना कि कुछ नहीं है तू शैलेंद्र
तेरी चाहत पे किसे गुमां हुआ जाता है
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2. ये कहाँ आ गए हम
इस मोड़ पर
न आरज़ू है न जुस्तजू है
न कोई मंजिल है न कोई रहबर है
है एक खाली उदास शाम का घेरा
सूखा हुआ शजर , टूटे हुए नशेमन
कारवां – ए – मुहब्बत के निशां भी बाकी नहीं है
आंख कुछ देखती नहीं है
कान कुछ सुनते नहीं है
होंठ कुछ बोलते नहीं है
आदमी कोई जिस्म नहीं बोतल है
हवा और पानी से भरी
अब से थोड़ी देर में जब टूटेगी ( ये बोतल )
तो इस मोड़ पर ही मिलेंगे
कुछ टुकड़े कांच के, चंद कतरे हवा और पानी के