मित्रो !
स्नेहआशा है स्वस्थ व आनंदित होंगे। मैं कैसी हूँ? यूँ तो बहुत अच्छी हूँ, आप सबके साथ बातें साझा करके और अच्छी हो जाती हूँ।
जैसे सूरज की किरणों से प्रकाश होता है, वैसे ही जहाँ प्रेम हो वहीं अंतस खिलता है। अंतस खिलता है तो चेहरा खिलता है। चेहरा खिलता है तो हमसे जुड़े लोग खिलते हैं और यदि वे खिलते हैं तो प्रेम वृत्त में कैसे रह सकता है? सबसे पहले ज़रूरी है मानसिक शांति और फिर देखें क्या कमाल होते हैं ! मित्रो ! अपने ऊपर काम तो करना होता है यानि अपने भीतर के दोस्त से बात करनी तो बहुत ज़रूरी है न!
आप ही सोचें, यदि कोई बात दिमाग को परेशान कर रही हो तो थोड़ा सा असहज होना तो स्वाभाविक ही है न ! नहीं, मेरे साथ कुछ नहीं हुआ लेकिन ये जो मेरी पड़ोसन है न रमा, ये इतनी दुखी रहती है कि मुझे बार – बार समझाना पड़ता है कि भई! इतनी परेशान क्यों रहती हो? जीवन में भाँति भाँति के लोग मिलते हैं, परिस्थिति आती है तो इतना परेशान हो जाओ कि स्वयं के स्वास्थ्य पर ही प्रभाव पड़ने लगे !
“हमेशा दूसरों से शिकायत करते रहने से कभी शांति नहीं मिलने वाली भैया, बेहतर है यदि परेशानी हो रही है तो उससे दूर हो जाओ या समझा सकते हो तो समझा दो।”
“कोई सुने तो समझाओ न किसी को न समझना हो तो—?” वह भिन्नाकर कहती है।
“तो,अपने आप उस पर अच्छे-बुरे के टैग लगाते रहो, इससे समस्या हल हो जाएगी क्या ? ” मैंने हँसकर उससे कितनी बार पूछा है।
” वो है ही ऐसी—“वह अक्सर मुँह बनाकर कहती। इन सब बातों को लेकर बेकार ही मानसिक बीमारी ओढ़ ली।
समझ नहीं आता, लोगों की मुस्कान किस कोने में जा छिपी है। पूरी तरह से बड़े भी नहीं होते और नाक पर मक्खी बैठने लगती है। रमा की सोच का प्रभाव उसकी पंद्रह वर्षीय बिटिया उर्वी पर कितना नकारात्मक पड़ रहा है, वह सोच ही नहीं पा रही है। मुझे भी बहुत सोच समझकर उससे कोई बात करनी पड़ती है वर्ना वह मुझसे भी अपनी बातें शेयर करना बंद कर देगी। अभी तो थोड़ा बहुत सुन भी लेती है फिर तो कुछ बताएगी भी नहीं। फिर और अकेली पड़ जाएगी। भला बताओ, इससे नुकसान किसका होगा? सब में बुराई निकालने से क्या होगा?
हम किसी को अच्छा और बुरा जैसी श्रेणी में विभाजित करने वाले होते कौन हैं? क्या हम केवल गुणों की खान हैं? हमारे अंदर अच्छा – बुरा दोनों का मिश्रण नहीं है?
जब हम अपनी चेतना के सबसे निचले स्तर पर कोई भी कार्य करते हैं वह सही कैसे हो सकती है? जब हम अपने चेतन मन से , चिंतनशील होकर कोई बात सोचते हैं, या इसके आधार पर कोई कार्य करते हैं वह महत्वपूर्ण हो सकता है।
हमारे किए गए अन्य सभी कार्यों की तुलना में बेहतर भी वही काम होता है जो प्रेम की चेतना से होता है क्योंकि मानव मस्तिष्क की भीतरी चेतना स्थिर नहीं है,वह हर समय बदलती रहती है इसलिए अपने दिल की स्थिति पर ध्यान देना जरूरी हो जाता है न! बात यह भी है कि हमारी भीतरी चेतना का सीधा संबंध हमारे द्वारा किए जा रहे कार्यों से है। हमें हर समय अपने कार्यों पर दृष्टि रखनी जरूरी है। मुस्काकर किए गए कार्य हमें चिंता मुक्त करते हैं।बस, वही तो प्रेम है इसकी कोई कठिन परिभाषा नहीं।
अगर हमें खुश रहना है तो सबसे पहले यह सुनिश्चित करना होगा कि हम हर हाल में खुश ही रहेंगे। जिस क्षण हम यह निर्णय ले लेते हैं, जीवन उसी क्षण से मुस्काने लग जाता है। छोटी छोटी बातों पर नाक पर मक्खी बैठाकर दूसरे के चरित्र पर टैग चिपकाने से हमारे मन की शांति और आनंद दोनों ही भँवर में डूब जाते हैं।
हम अपने जीवन में क्या चाहते हैं? किसी की बुराई देखकर नकारात्मकता का टाट ओढ़ना या सकारात्मकता का पश्मीने के कोमल अहसासों से आनंदित होना? यह हमारी अपनी च्वॉइस के द्वारा ही निर्धारित होता है।
मित्रो!
इस पर सोचते हैं और फिर चर्चा करते हैं किसी जीवन से जुड़े विषयों पर।
बढ़िया रहेगा न यदि हम सदा स्वस्थ व प्रेम में मगन रहकर जीवन के वर्तमान में मुस्काते हुए बने रहें ।
आमीन!
स्नेह सदा
आपकी मित्र