उदास क्यों रहती हो
जब-तब ये दुनिया तुम्हारे पाँव में काँटे-सी चुभती रहती है
तुम चाहो तो मेरी खाल को चप्पल की तरह पहन सकती हो
या
कालीन की तरह बिछा सकती हो
नहीं इसमें यातना नहीं
तनिक भी
तुम्हारे प्यार ने मुझे पानी-सा तरल कर दिया है
कुहासे की किसी सुबह
मुझे छूकर गुनगुना कर सकती हो
और
अपने केश धो सकती हो
मुझे अक्षर-अक्षर पिरोकर वो गीत गूँथ सकती हो
जिसे पहले गुनगुनाया करती थी
राख बनाके बासन माँज सकती हो
चौका लीप सकती हो
पोतनी-माटी बनाकर
बुझे मन कुछ अधिक बनाने का मन न करे
तो मुझे माँड़ बनाकर खा सकती हो
दीप की तरह बाल सकती हो
घन्टियों-सा बजा सकती हो
मंत्र-सा उच्चार सकती हो
स्वप्न बनाकर
अपनी नींद के बगल में
सोते शिशु-सा रख सकती हो
प्रेम कर सकती हो मुझसे °
मेरी तरह
तुम मुझे खा सकती हो
गा सकती हो
पी सकती हो
जी सकती हो
तब फिर बताओ
उदास क्यों रहती हो?
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तुम एक फूल हो
तुमको लिखे पत्र के सम्बोधन में
मैंने तुम्हें फूल कहा है
अब सोचता हूँ क्या पत्र में लिखा वह शब्द
केवल शब्द है
या
वह प्राणपूर्ण है और सुगन्धि से भरा हुआ है
बिल्कुल तुम्हारी तरह !
जब मैं पत्र को
डाकखाने सौंपने जा रहा था
तब क्या मेरे साथ एक फूल यात्रा पर था?
पेटिका में चिंताओं, निराशाओं से भरे पत्रों के बीच क्या उस मासूम फूल ने अपना परिचय दिया होगा?
क्या उसने बताया होगा कि वह एक फूल है
और वह किसी के नाम के साथ जुड़ने जा रहा है?
अगर पत्र पहुँचने से पहले वह फूल झरके वापस भाषा के गर्भ में चला जाता है तो भी कोई बात नहीं
फूल नहीं तो फूल की याद ही पहुँचे
मुझे तो केवल संकेत देना था
कि-
तुम एक फूल हो
और यह बात याद रखना।
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गीली आंखों की हँसी के लिए
तुम्हारे पतझर मन-मौसम के लिए लाऊँगा
वसन्त
गाऊँगा गीत
वन-पखेरूओं का भिनसारी कलरव
अपने कंठ में उतारूंगा
क्रीड़ाएँ करूँगा
आषाढ़ की बदली बन
बरस जाऊंगा
पानी से आग्रह करूँगा वह तुमसे
दोस्ती करे
सारे रागों को आमंत्रित करूँगा
फूलों को लिखूंगा पत्र
कि
आना भूलना मत
तुम्हारे कोरे दुपट्टों के लिए
कशीदाकारी सीखूंगा
बनाऊंगा बेल-बूटे दुनिया जहान के
इंद्रधनुष उठा लाऊँगा अपने इन कंधों पर
भले वह दुर्गम पहाड़ी के पीछे खिलता हो
तुम चाँद देखकर हाथ बढ़ाओ
और
अगली रात उसे अपनी आँख में उगता पाओ
तो आश्चर्य कैसा
असम्भव कुछ भी नहीं है मेरे लिए
तुम्हारी ये पनीली आंखें कुछ भी करवा सकती हैं मुझसे
कुछ भी कर जाऊँगा मैं तुम्हारी इन पनीली आंखों के लिए।