नन्हे मुन्नों में कुछ न कुछ तक़रार चलती रहती है तो क्या हम बड़े बहुत सहज रहते हैं? नहीं भाई, उनकी तक़रार तो चुटकी में मुस्कान में बदल जाती है पर हम बड़े तो अपने आप को दायरों में कैद कर लेते हैं। इतने पूर्वाग्रह पाल लेते हैं कि बस वृत्त में घिरते चले जाते हैं।
जीवन का सबसे सुंदर रंग प्रेम है। ये ऐसा रंग है जिसमें हर कोई रंगना चाहता है। इसमें जीना चाहता है। जिस घर में प्रेम नहीं है, श्रद्धा नहीं है, विश्वास नहीं है फिर वह घर खुशियाँ नहीं दे पाता। विश्वास, प्रेम के धागे को बांधे हुए है। यदि विश्वास टूट गया तो प्रेम के धागे भी टूट जाते हैं।
ये रंग जीवन में प्रत्येक व्यक्ति के ऊपर चढ़े हों, हर रिश्ते में हों। इस रंग को बदरंग न होने दें । अपने विश्वास को कम मत होने दें।
‘कुछ तो लोग कहेंगे’ तो भी, उनकी बातों में आना ही क्यों? हमें भी तो बुद्धि नामक शुभाशीष मिला है।
धन कम हो जाए तो हम चिंता करने लगते हैं। सही भी है, माँ लक्ष्मी के बिना क्या कर लेंगे जी? लेकिन सबको ही तो मुस्कान प्यारी है। हमारी माँ लक्ष्मी और माँ शारदा को भी ! मुस्कान से ही तो प्रेम खिलेगा। लक्ष्मी जी और माँ वीणापाणि भी तो मुस्कान पहचानकर घर में प्रवेश करती हैं। आपस का प्रेम कम होना चिंता का विषय है। यदि हम सफल नहीं हो पा रहे हैं तो इतनी बड़ी बात नहीं यदि हम अपने रिश्तों को बनाकर चल रहे हैं तो निश्चित रूप से हम प्रेम को वृत्त में बाँधकर नहीं रखते और जीवन में सफल हैं लेकिन इसके लिए थोड़ी सी कोशिश करते रहनी होगी।
हम प्रार्थना करते रहें कि ईश्वर की अनुकंपा सब पर रहे, किसी को दर्द न मिले, दु:ख न मिले, पीड़ा न मिले, यह भावना बनी रहेगी तो प्रेम स्वयंमेव ही मन के भीतर से झाँककर दूसरों के मन में सहजता, सरलता से प्रविष्ट होगा। उसके लिए प्रयास करने की आवश्यकता भी नहीं होगी।
दूसरों के प्रति यह भावना रखने से हमारा प्रेम निर्मल व सहज, सरल बना रहेगा और कभी भी वृत्त में बंधकर नहीं रहेगा। रंग तो ऐसे ही निर्मल होने चाहिए कि सामने वाले व्यक्ति को अपने प्रेम रंग में रंग लें। इसलिए जीवन में उन रंगों को बिखराने की कोशिश करें, जो रंग जीवन में उत्सव लाएं। आइये, सब मिलकर उत्सव मनाते रहें।
मितरा ! जीवन छोटा सा ! इसको सुंदर ढंग से जीने की प्रमुख शर्त ‘प्रेम’!