आतप
फिर फूले हैं
सेमल, टेसू, अमलतास
हुआ ग़ुलमोहर
सुर्ख़ लाल
ताप बहुत है
अलसाई है दोपहरी
साँझ ढले
मेघ घिरे
धीरे-धीरे खग, मृग
दृग से ओट हुए
दुबके वनवासी
ईंधन की लकड़ी पर
रोक लगी जंगल में
वन-वन भटकें मूलनिवासी
जल बिन
बहुत बुरा है हाल
तेवर ग्रीष्म के हैं आक्रामक
कैसे कट पाएंगे ये दिन
जन-मन,पशु-पक्षी
हुए हैं बेहाल
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विरक्ति
कदापि उचित नहीं
दिगंत के उच्छिष्ट पर
फैलाना पर
शमन कर भावनाओं का
मनुष्य मन पर
प्राप्त कर विजय
उड़ भी तो नहीं सकते
अबाबीलों के झुंड में
ठहरी हुई हवा
बेपनाह ताप
बहुत सुंदर हैं
नीम की हरी-हरी
पत्तों भरी ये टहनियाँ
अर्थ क्या है
पत्तों वाली टहनियों का
न हिलें यदि
उमस भरी शाम
विरक्त मन,
फैल गई है विरक्ति
बोगनवेलिया के गुलाबी फूल
करते नहीं आनंदित
यद्यपि खूबसूरत हैं वे
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गीत बहुत बन जाएंगे
यूँ गीत बहुत
बन जाएंगे
लेकिन कुछ ही
गाए जाएंगे
कहीं सुगंध
और सुमन होंगे
कहीं भक्त
और भजन होंगे
रीती आँखों में
टूटे हुए सपन होंगे
बिगड़ेगी बात कभी तो
उसे बनाने के
लाख जतन होंगे
न जाने इस जीवन में
क्या कुछ देखेंगे
कितना कुछ पाएंगे
सपना बन
अपने ही छल जाएंगे
यूँ गीत बहुत
बन जाएंगे
लेकिन कुछ ही
गाए जाएंगे |