जब मैंने हथियार बनाया क़लम को
और कविता के बारूद से तोड़ने लगा
उनका शीशमहल
फिर
ध्वस्त होने लगा उनका
झूठ का कारोबार
उजड़ने लगा भव्य दरबार॥
मुझे यक़ीन है
एक दिन मेरी जीत होगी
झूठ और सच की इस लड़ाई में
मगर हो सकता है
मैं अपने जीत का जश्न मनाने के लिए
इस दुनिया में न रहूं॥
मगर ज़िंदा रहेगी मेरी ये कविता
मेरे लाखों चाहने वालों के विराट हृदय में,
मेरे मरने के बाद
पैदा होंगे हजारों सच के अनुयायी
जो मेरी कविता को हथियार बना कर लड़ेंगे
सच की लड़ाई,
अधिकारों की लड़ाई,
स्वाभिमान की लड़ाई
सतत निरंतर
अनंत काल तक