1.
जिन्दगी क्या है ?
एक खूबसूरत दिन है
एक रंगीन शाम है
रसभरा भोजन है
आनंद भरा जोबन है
महकती पुरवाई है
सिसकती तनहाई है
मिली है ये जीने को
जाम ए उल्फत पीने को
तू रंगमंच का किरदार है
अभिनयमय संसार है
हँस – रो – गा ले
अपने लिए ताली बजा ले
तू ही टिकटों का खरीदार है
तुझसे ही सजा बाजार है
मत गिला कर किसी बात का
होनी ही होनहार है
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2.
जीवन नाटक है
अद्भुत नाटक
जिसे न लिखने वाला कोई है
न देखने वाला कोई है
पात्र ही दर्शक है
नाटक खेला जा रहा है अबाधित
राम के समय से
कृष्ण के समय से
बुद्ध के समय से
पात्र बदलते हैं
कहानी नहीं बदलती है
मंच की सज्जा बदलती है
दृश्य बदलते है
संवाद नहीं बदलते है
कोई क्रोधी है
कोई कंजूस है
कोई कामी है
कोई कायर है
किरदार बदलते हैं
बड़ा विचित्र नाटक है
बिना निर्देशक का नाटक
कब शुरू हुआ
कब खत्म होगा
प्रश्न तो है
पर उत्तर नहीं है
इसे खेलना और देखना नियति है हर एक की
सुख-दुख का सम भोग करते
हर पात्र खेल रहा है इसे सत्य मान कर
अनन्त जिजीविषा के साथ
तुम्हें ये ख्याल तो आया होगा
तुम अपने से बड़े अभिनेता से मिल रहे हो
वो लंगोटधारी जिसके स्मित के आगे फीकी थी महारानी की मुस्कान
जिसने अहिंसा का अभिनय रचा था महान
बुद्ध ने भी तो यही सिखाया था
सम्यक अभिनय
और कृष्ण का कर्म कौशल अभिनय में कुशलता का ही दूसरा नाम है
सच कहो चार्ली
अच्छा अभिनय वही कर सकता है जो अपने प्रति बहुत गहरा ईमानदार हो
जो अपने को पहचानता हो
अभिनय झूठ नहीं है
अभिनय सच को सामने लाने की कला है
तब ही तो कह गए ओशो
जीवन ऐसे जियो जैसे अभिनय कर रहे हो
अभिनय ऐसे करो जैसे जीवन जी रहे हो
4.
परिवर्तनशील जगत में पाले हुए
नित करते है नये नये स्वांग
मान लेते है स्वयं को जाने क्या क्या
चौकीदार भी और चोर भी
देशभक्त भी और कर्मयोगी भी
धार्मिक भी और सांस्कृतिक भी
भावों के इंद्रधनुष अक्सर हमारे मुख पर खींचे रहते है
आंखें बरस जाती है कभी कभी
होठ लरज जाते है कभी कभी
अंगुलियाँ मुद्राओं में खिल जाती है कभी कभी
कभी कभी तो हमारा पेट भी अभिनय करता है और जांघे भी
मन लिखता ही रहता है नवीन संवाद
मस्तिष्क निर्देशक बनने को आतुर रहता है
संभालना चाहता है कमान विश्व रंगमंच की
पर जीवन के हाथों से कमान छीन नहीं पाता है
थक हार कर कोने में बैठ विचारों की सिगरेट सुलगाता है
स्मृतियों की राख गिरती है धरती पर
आदमी विवश है अभिनय करने के लिए
यहां जन्म भी अभिनय है मृत्यु भी
सब एक क्रम से आते है एक क्रम से जाते हैं
यहां बार बार पर्दा गिरता है
बार बार उठता है
नाटक कभी रुकता नहीं है
बस अभिनेता बदलते जाते हैं
अभिनय नहीं बदलता है
नाटक नहीं बदलता है
दृश्य बदलते जाते हैं
कहानी नहीं बदलती
संवाद बदलते जाते हैं
कह गया
विश्व एक रंगमंच है
और हम सब उसके पात्र
सबका आने का और जाने का समय तय है
बात तो तन्ने सच्ची कह दी बावले
अब तन्ने और बताऊं
लोग तो ये भी कहे है
कि ये दुनिया एक पागलखाना है
और हम सब उसमें रहने वाले पागल
और सुन्न
कोई जे भी कह गयो है
कि कलाकार,कवि और पागल
सब एक ही जात के होवे है
हंस रियो है
तन्ने लगे है ए बात भी तन्ने ही कही थी
ना ना रे ! हर बात कहने वाला तू ही एक थोड़ी ना है
और भी फन्ने खां है बहुत
और बहुत घमंड न कीजे
तेरे से पहले ही यहाँ
राम की लीला और कृष्ण की लीला कह दी थी
लीला मने खेल
खेल मने पर्दा उठाना और पर्दा गिराना
समय के दर्पण में एक पल झलक जाना
फिर सूर्यास्त हो जाना फिर रजनी का गाना
और यहाँ तो गाँव गाँव गली गली खेल होवे से
नौटंकी ,रम्मत और भी न जाने क्या क्या केवे छे
और वो शंकर भी डांडी मार ही गयो
कौन माता ? कौन पिता ?
कौन पत्नी ? कौन भ्राता?
जीवन कोरो एक खेल
खेलिया जाओ खेलिया जाओ
जद तक मन ऊब नहीं जावे
अठे तो रोज स्वांग भरिजे है
अठे तो रोज मेला लागे है
लोग थाके ही कोनी खेलता
ईर्ष्या ,द्वेष ,मोह ,ममता
ये नए नए परिधान पहन कर
काम ,क्रोध ,मद ,मोह के
नित नए मेकअप कर कर
रोज खेलने आ जावे है
तो चालन दो ओ खेल
धरती रंगमंच
जिंदगी नाटक
हम सब अभिनेता
और वो विधाता दर्शक
हँसता है ,तालियाँ बजाता है ,मुस्कुराता है
कभी उसके भी आँख के कोने से कोई आँसू लुढ़क आता है .