1.
पंखे के नीचे
बिस्तर पर लेटा था पुरुष
पर सपने में तितलियों सी तैरती रही स्त्री
स्कूटर के धुएं से जब
प्रकृति को नष्ट करता रहा पुरुष
तो कमर पकड़े पीछे बैठी थी स्त्री
यहां तक कि कॉलेज नोट्स से
ज्ञान बटोरने की कोशिश कर रहा था पुरुष
तो किताब के पन्ने से टपकी तस्वीर, मुस्काई स्त्री
कामाग्नि में अंधा
स्त्री-देह जलाता, अपराध करता पुरुष
पर चाहते, न चाहते सहचर बन गई स्त्री
जब बंजर जमीन पर, बुझे मन से
प्रेम तलाश रहा था पुरुष
तब भी दूर हरियाई धरती सी ताक रही थी स्त्री
पुरुष हर समय ढूंढता रहा स्त्री।
स्त्री मान बढ़ाती कहती रही,
‘तुम सर्वश्रेष्ठ हो पुरूष’
.. है न!
********************
2.
इन दिनों
प्रेम का असर उतर रहा है
उतरते प्रेम का अर्थ
कत्तई प्रेम का मरना नहीं होता
बस कभी सांस रोके सी-सॉ झूले से
नीचे उतरते हुए महसूसने जैसा है
प्रेम का उतरना।
शाब्दिक अर्थों में मानें तो
शायद है ये, प्रेम से उतरना, नहीं
प्रेम में उतर जाना, है
तभी तो, इन दिनों
नजरें, उतार चढ़ाव से इतर
ठहरती हैं, आज्ञा चक्र पर
इन दिनों खुद के अंदर ढूंढता हूँ,
ऊर्जा का सहस्र प्रवाह
मूलाधार से सहस्त्रार की ओर
है उतरते प्रेम का असर ही
जो, अवसाद के बदले लाता है स्थिरता
क्योंकि उतरते हुए भी
प्रेम अपने गुलाबी असर की बंदिशें
कॉर्निया के किनारे पर
चमकते तटबंधों की भांति ठहरा देता है
वैसे भी नदियाँ
अपनी डेल्टाई स्थिति में आने पर
बहती है थम-थम कर
और अवसादों के गट्ठर को छोड़ कर
कर ही देती हैं, अंततः समर्पण।
इन दिनों बढ़ती उम्र महसूस हो रही है
इन दिनों प्रेम में तैर रहा हूँ
… है न!