1. मैंने एक द्वंद्व को जीता है
क्या गलत है,
क्या सही?
खुद से ही,
खुद में ही ,
अटकी रही।
बरसों तक
मन मस्तिष्क में,
इस उलझन को
घसीटा है।
आज मैंने,
अंतर्मन के
एक द्वंद्व को
जीता है।
झरने,जंगल,
धरा ये अंबर
कितना कुछ तो
दिया है उसने।
फिर पिंजरा क्यों
मेरी किस्मत हो?
चाहे क्यों न
रत्न जड़ित हो,
स्वर्णाभूषित कारागार के
सुख से खुद को
रीता है।
आज मैंने
अंतर्मन के
एक द्वंद्व को
जीता है।
नई रोशनी,
नई चांदनी,
उम्मीदों की
एक नई बानगी
पलों का ये सफर
न जाने
कितने युगों में
बीता है।
आज मैंने
अंतर्मन के
एक द्वंद्व को
जीता है।
2. क्या हुआ जो नंबर थोड़े कम आए हैं
क्या हुआ जो नंबर
थोड़े कम आए हैं,
चेहरे पर विषाद के
बादल क्यों छाए हैं?
मां शारदे ने कहां छापी
कोई अंक तालिका
अनुत्तीर्ण से कब छीनी
कोई ज्ञान पुस्तिका।
करने को भेद,
हम इंसानों ने ही
ये पाखंड रचाए हैं।
क्या हुआ जो नंबर
थोड़े कम आए हैं।
कामयाबी कब से
अंकों की मोहताज हुई?
बिन ज्ञान सफलता
हर बार बेताज हुई।
ज्ञान मूल है अंधकार
मिटाने का,
सतत प्रयास है मंत्र
शौर्य बनाने का।
कोशिशों से तो,
बंजर भी लहलहाए हैं।
क्या हुआ जो नंबर
थोड़े कम आए हैं।
किसी अंक की क्या औकात,
जो तुझे रोक दे।
किस तालिका में इतना दम,
कि तुझे टोक दे।
याद रख अब कोई
जामवंत नहीं आएगा
जो तुझको तेरी शक्ति
याद दिलाएगा।
मत समझ मां सरस्वती के
आशीर्वाद से वंचित है तू।
ईश्वर की असीम
शक्तियों से संचित है तू ।
पहचान तुझमे असीमित
संभावनाएं हैं।
क्या हुआ जो नंबर
थोड़े कम आएं हैं।
ज्ञान का मापक
किसने और कब तय किया?
अशिक्षित मानव ने
फिर क्यों जन्म लिया?
क्या उस नर में
नारायण का वास नहीं?
या फिर नारायण का
ये उपहास नहीं?
जब हम सब एक ही
ईश्वर के जाए हैं
फिर क्या हुआ जो नंबर
थोड़े कम आए हैं।