1. स्त्रियाँ
हरी-भरी फ़सलों-सी
प्रसन्न है उनकी देह
मैदानों में बहते जल-सा
अनुभवी है उनका जीवन
पुरखों के गीतों-सी
खनकती है उनकी हँसी
रहस्यमयी नीहारिकाओं-सी
आकर्षक हैं उनकी आँखें
प्रकृति में ईश्वर-सा मौजूद है
उनका मेहनती वजूद
दुनिया से थोड़ा और
जुड़ जाते हैं हम
उनके ही कारण
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2. वह अनपढ़ मजदूरनी
उस अनपढ़ मजदूरनी के पास थे
जीवन के अनुभव
मेरे पास थी
काग़ज़-क़लम की बैसाखी
मैं उस पर कविता लिखना
चाह रहा था
जिसने रच डाला था
पूरा महा-काव्य जीवन का
सृष्टि के पवित्र ग्रंथ-सी थी वह
जिसका पहला पन्ना खोल कर
पढ़ रहा था मैं
गेंहूँ की बालियों में भरा
जीवन का रस थी वह
और मैं जैसे
आँगन में गिरा हुआ
सूखा पत्ता
उस कंदील की रोशनी से
उधार लिया मैंने जीवन में उजाला
उस दीये की लौ के सहारे
पार की मैंने कविता की सड़क
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3. आँकड़ा बन गया वह किसान
सूनी आँखें
ताकती रहीं
पर नहीं आया
वह आदमी
बैलों को
सानी-पानी देने
दिशाएँ उदास
बैठी रहीं
पर नहीं आया
वह आदमी
सूखी धरती पर
कुछ बूँद आँसू गिराने
उड़ने को तत्पर रह गए
हल में क़ैद देवदूत
पर नहीं मिला उन्हें
उस आदमी का
निश्छल स्पर्श
दुखी थी खेत की ढही हुई मेड़
दुखी थीं मुरझाई वनस्पतियाँ
दुखी थे सूखे हुए बीज कि
अब नहीं मिलेगी उन्हें
उसके पसीने की गंध
अभी तो बहुत जीवन
बाक़ी था उनका —
आँकड़ा बन जाने वाले
उस बदकिस्मत किसान की
बड़ी होती बेटी बोली
आँखें पोंछते