फूले टेसू -कस्तूरी के,
मदिर पवन डोली -आई।
विमल सलिल रंगों की सरिता,
सरस सुभग होली आई।।
शीत पहेली को झुठलाता,
पूर्ण शिखा नभ में चंदा।
प्रीत पाहुनी ढाई आखर ,
वैमनस्य होता मंदा।।
पिचकारी के सावन – भादों,
भरे रंग टोली आई।
भोर -दादरा ताली देकर,
ठुमरी की तानें खोले।
सातों सुर भी इंद्रधनुष के ,
होली के दिव में डोले।।
मधुर स्वरों की बाँसुरिया ले,
गीतों की बोली आई।
गेंदा, किंशुक, गुलमोहर भी,
भूमि चित्र के अधिकारी।
चंदन, रोली, कुमकुम, अक्षत,
बन गुलाल के व्यवहारी।।
बर्फी, गुजिया ,मालपुए की,
भर बाबुल झोली आई।
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