पिता के हाथ की रेखाएँ
पिता के हाथ को
एक बार, एक ज्योतिषी
ने देखकर बताया था
कि आपकी कुंडली में
धनलाभ होगा
संभव है कि आपको
राज योग
भी मिले
लेकिन, पिता के हाथ कभी
नहीं, लगा कोई गड़ा धन
और ना ही मिला उनको
कभी राजयोग
वो, ताउम्र, खदान में
पत्थरों को काटते रहे
काटते-काटते ही शायद घिस
गई, पिता के हाथ की रेखाएँ
जिनमें, कहीं घन योग या
राज योग रहा होगा
इसलिए भी शायद
उनको नहीं मिला कभी
धन योग ना ही कभी
मिल सका उनको राज
योग
वो, ताउम्र बने रहे
दिहाड़ी मजदूर और
काटते रहे पत्थरों के
विशालकाय खदान को
और, काटते – काटते खदान
का पत्थर एक दिन पिता
उसी खदान में समा गये
फिर, पिता कभी घर
लौटकर नहीं आये
ज्योतिषी आज भी चौक पर
बांँच रहा था, भविष्य
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पिता की ख्वाहिश
पिता का जब हमें
खत मिलता तो
उसमें घर का
जिक्र जरूर होता
जैसे पिता घर को ही
ओढ़ते और बिछाते
आ रहे थे
हमें ज्यामिति, और एलज़ेबरा
से डर लगता…
पिता को कभी न खत्म होने
वाले, मुकदमों से..
हमें कभी- कभी लगता
पिता को मुकदमे
कारावास की तरह
लगते हैं….
जिसके पीछे कैद होते
पिता… !
वो मुकदमे के जल्द से
खत्म होने की प्रतीक्षा
करते…
मुकदमे के लंबे खींचने
वाले, समय से
पिता उकताकर रह भर
जाते..
बरसात में पिता ज्यादा
आशंकित हो जाते
घर को लेकर..
घर की दीवारों
को लेकर..
उसके फूस के बने
छज्जे को लेकर…
दुनियाँ से विदा लेते हुए
पिता की आखिरी ख्वाहिश
थी..
कि हर.. हाल में हमारा घर बचा
रहे…. !