1. आकाश
तुम्हारा आकाश
अनंत अपरिमित,
क्षितिज के उस पार….
कल्पनाओं के पंख,
तकनीक का संबल पाकर
मापते हैं उसका विस्तार,
सगर्व ।
मेरा आसमान
पेड़ की फुनगियों तक …
छूना चाहती हूँ,
सामर्थ्य भर
पंखों की उड़ान
मेरी भी है।
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2. आकाश
तुम्हारे आकाश में स्थित हैं
सत्ता के सूरज
वैभव के चंद्रमा
महत्वाकांक्षाओं के दिपदिपाते नक्षत्र…..
मेरा आसमान
चिंता, उदासियों, अनिश्चितता की
बदलियों से ढंका।
बेसब्री बौखलाहट की गड़गड़ाहट,
अनहोनी आशंकाओं की बिजलियाँ
डराती हैं बार बार।
फिर भी उम्मीद है मुझे
सतरंगी इंद्रधनुष
कभी झलकेंगे
किसी न किसी छोर से।
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3. स्वप्न
आज
कुछ भी नहीं किया मैने।
देखती रही
तट पर टकराती
लहरों का आवेग ,
उमंग, उछाह, रोष के बाद
लौट जाना निढाल,
तो कभी अधिक ऊंचाई और वेग का
संकल्प।
रेत में ढूंढा
सीपियों का खजाना,
बेमतलब बनाए घरौंदे
फिर मिटा दिए यूं ही।
वक्त के हाथों
ख्वाबों के किलों का बनना
बिखरना, ढह जाना
गुजरता रहा आँखों से।
देखा नि:शब्द…
दूर पेड़ों से
झरते पत्तों को,
हवा में उड़ते,
मिट्टी की परतों में समाते।
अस्तित्व के होने
और न होने के बीच की दूरी
मापना आसान नहीं है।
चमकता दहकता
सूरज का अंगार भरा गोला
समुंदर के भीतर समाते देखा
और बदल जाना,
दिशाओं के रंग।
सन्नाटे को तोड़ती
पक्षियों की गूँज,
आकाश के अपने हिस्से में
जीने जगने की आश्वस्ति देती
उनकी उड़ान।
एक स्वप्न से जगती हूँ मैं
परिचित आहटों से,
लौटती हूँ अपनी बदहवास दुनिया में,
झुंझलाती हूँ
अनकिए कामों की फेहरिस्त
देख कर।