1.
लता
तुमसे तो प्रेम रहा
मैं अत्यंत भावुक हुआ जा रहा हूँ
रोता जा रहा हूँ
मुझे बहुत से लोग याद आते रहे है
तुम याद आती हो
तुम्हें भुलाना धरती के लिये मुमकिन नहीं
तुम सबसे बड़ी गुरु
मिठास और प्यास की
तुम मां / बहन / बेटी
घर – घर की
तुम ओशो से बड़ी कलाकार हो
सरस्वती पहले तेरे कंठ में समाई
बची हुई ओशो के कंठ में समाई
तू हर भारतीय की जीवन मदिरा है
जिसे पी कर वह
सुख में और सुखी हो जाता है
दुख में और दुखी हो जाता है
क्योंकि दुख में और दुखी हो जाना हर इंसान को प्रिय है
इसमें एक राहत होती है
किसी पागल जनरल ने कहा था
तुम कश्मीर ले लो
हमें लता दे दो
पागल हम बड़े है
हमने लता नहीं दी
हमने मौत को भी लता नहीं दी
लता आज भी हमारे पास है
हमारे ह्रदयों में
हमारे स्वरों में
हमारे तीज – त्यौहारों में
लता तू संस्कार है
समय का सबसे बड़ा
संस्कार
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2.
पिता को मरे सात साल हो गए
मां से मिले सात महीने
बेटी दूर है
घर में कोई नहीं है
पर जीवन का क्रम रुकता नहीं
जीवन चलता रहता है
सांस – सांस अपनी कीमत चुकाती है
कौन अपना ? कौन पराया ?
मन के विश्वास ही तो है
ये तो अहर्निश चारों ओर घेरे है
यही तो अपना है
इसे अस्तित्व कहो , निराकार कहो , भगवान कहो
ये जो न मिटने वाला है
यही हजार हाथों से थामे है
मृत्यु के इस पार या उस पार
इसी का साम्राज्य है
यही असंभव को संभव करता है
यही संभव को असंभव करता है
सारे कार्य – कारण इसी में विलीन हो जाते है
ओ
घास के फूल
चंद्रमा की किरण
रोटी के टुकडे
किताब के पृष्ठ
रात के सन्नाटे
और मेरी जीवेषणा
तुम्हीं मेरे सत्य को रेखांकित करते चले जाते हो
जन्म से मृत्यु के दो छोरों के मध्य