हो रहा निर्माण फिर -फिर
हाथ कला जब सध गए हों
खिल उठे ये कुंज उपवन
पुष्प वर्षा हो रही अब।
सुगंधित शीतल पवन ये
चल रही चारों दिशाएँ।
खिल रहा है मन भी कोमल
स्पर्श पाकर शरद का जो ।
हृदय उमंगों से भरा ये
प्रफुल्लित हो कंठ भी अब
गा रहा संगीत है ये
खोजता निर्माण नित-नित।
हृदय युवा स्पंदित हुआ जो
राष्ट्र ध्वज ले भुजाओं में चला ये
ऊँचाइयाँ छूने गगन की।
आज मगन हो चल दिया यों।
शक्त हो तिनके सभी जब
पल रही आशाएँ हर घर
संचार ये अब चल रहा है
क्रांति का संदेश लेकर।
पंख हो आशाओं के तो
उड़ चले मन की दिशाएँ
मूर्त में भी प्राण भरते
कला समृद्ध हाथ हैं जो।
महामार्ग प्रेरणा का बना ये ।
संकल्प से सिद्धि के युग में
मार्ग प्रशस्त कर चल दिया जो
छू कर हृदय की ये तरंगें।
हो रहा है गान हर घर
गुंजित हुई ध्वनि सब दिशाएँ
विजय का ये गान लेकर।
नमन करती उन सभी को
करते राष्ट्र निर्माण जो नित।