चाँदनी और चंपा
समां बंधा है देखो मन का
मद्धम झोंका शीतल पवन का,
उन्मुक्त रोशनी यहाँ वहाँ
धवल चाँदनी में खिल उठी चंपा
चाँद ने किया प्रस्ताव प्रणय का
कोयल ने छेडा राग स्पंदन सा,
रूप निखर आया सावन का
धवल चाँदनी में खिल उठी चंपा
ओस गुनगुनाए गीत मिलन के
टपके बन बूंद अनमने मन से
चमक उठे जैसे कोई मनका
धवल चाँदनी में खिल उठी चंपा
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समय की मार
पहले गलते हैं सघन अणुबंध
हवा के अम्ल से, क्षार से
फिर हिल जाती है नींव उसकी
सतत् गर्जन से, हुंकार से
टूट कर बिखर जाता है तब
लहरों के वेग से, प्रहार से
रेत बन जाती हैं शिलाएँ भी
देखो समय की मार से