नाम मेरा रामपीयारी
लोग कहें बेचारी।
कब देखूं मैं फटी एड़ियां
कब हाथों के छाले
घिसी हाथ की सब रेखाएं
है किस्मत पर ताले
हारी है मैंने जीवन की
हर बाजी हर पारी
लोग कहें बेचारी।
अंगुली थामे चन्नु-मुन्नु
मांगे मुझसे रोटी
भुखे पेट को सपन दिखाना
सबसे बड़ी कसौटी
मिहनतकश ये जिस्म सजाकर
बैठा है लाचारी
लोग कहें बेचारी।
छलनी जैसी चुनर मेरी
सरदी झेल न पाए
बदन ठिठुरता रात रातभर
किसको रपट लिखाए
दीन-हीन जन ठौर न पाये
मौसम अत्याचारी
लोग कहें बेचारी।
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