१. मौन वीणा में मृदुल फिर तान जागी
मिल गया है शब्द भू के मूक मन को,
सिद्ध सा गंतव्य लगता क्षुधित कन को,
गीत गाती है व्यथा मेरी अभागी।
जो तिमिर के अंक में थे स्वप्न बोते,
रात के उद्घोष पर अधिकार खोते,
उन सनातन बंधनों ने मुक्ति मांगी।
तान पर प्रतितार का अविराम कम्पन,
यह प्रलय निर्माण का संयुक्त नर्तन,
सिद्धियों की साधना से होड़ लागी।
मौन वीणा में मृदुल फिर तान जागी।
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२. क्षितिज पर मधुर मिलन संगीत
उत्सव सा नंदन कानन में,
मादकता वसुधा के तन में,
किस यौवन की दिव्य किरण से
खिली कमल सी प्रीत।
मधुर रूप की मृदुल कल्पना,
तू यथार्थ मैं मधुरिम सपना,
कन कन पर अंकित कर दे हम
निज संगम मधुमीत।
बन पराग पथ में बिछ जाऊं
आओ! सूना स्वप्न सजाऊं
क्या निशीथ के कारण देरी?
देह जलाती दीप।
क्षितिज पर मधुर मिलन संगीत।