क्यों जोहता है बाट हँसला
तज दें उथला घाट हँसला।
जो जड़ता में प्राण फूंक दें
यहाँ नहीं वह ठाठ हँसला।
मैला घर;आँगन हुआ मैला
उलट-पलट दे टाट हँसला।
जग सारा स्वारथ में उलझा
खोल दें ज्ञान-कपाट हँसला।
नाते- रिश्ते मत कर भोले
जग के भाव सपाट हँसला।
इस बस्ती में मुरदे बसते
मत कर पीड़ा-पाठ हँसला।
नश्वर माया काया है नश्वर
भव के बंधन काट हँसला।
विरम रहा चंचल चित्त तेरा
स्नेह से उसको डाँट हँसला।
ये मेला कोड़ी- कंकड का
नहीं मोती की हाट हँसला।
सत्य के पग में पड़े फफोले
कपट बैठता खाट हँसला।
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