1. सड़क
सड़क हूँ मैं
कही गयी नहीं मैं
बरसों से बस यहीं हूँ
कई आए, कई चले गए
कोई बार बार आया
कोई जाकर आया नहीं
कुछ गिरे, कुछ संभल गए
कुछ गिरकर संभले नहीं
कोई देख गया,
कोई अनदेखा कर गया
जाने कितने हादसे
सह गयी
सब कुछ बस देखती
रह गयी
कभी बारिश में भीगी,
कभी तपी जेठ की धूप में
कभी टूटी तो कभी जुड़ी
जमाना आगे निकल गया
मै बस यहीं रह गयी
सड़क हूँ यही पड़ी हूँ
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2. प्रेम
प्रेम होता है..
उस पुष्प की भांति,
जो स्वत: ही खिल जाता है,
हर मौसम
कभी भी, कहीं भी
न बारिश और धूप से शिकन,
न सर्द हवाओं का कंपन
प्रेम होता है..
आज़ाद उस पक्षी की भांति,
जो पार कर जाता है
हर सरहद
न कोई डर, न कोई भेद,
बाँध नहीं पाती कोई भी बेड़ी
प्रेम होता है..
उस नदी की भांति
जो बहता है स्वतः ही
मन के किसी कोने से
पर अनवरत ही बहती जाती है
जो स्वत: ही खिल जाता है,
हर मौसम
कभी भी, कहीं भी
न बारिश और धूप से शिकन,
न सर्द हवाओं का कंपन
प्रेम होता है..
आज़ाद उस पक्षी की भांति,
जो पार कर जाता है
हर सरहद
न कोई डर, न कोई भेद,
बाँध नहीं पाती कोई भी बेड़ी
प्रेम होता है..
उस नदी की भांति
जो बहता है स्वतः ही
मन के किसी कोने से
पर अनवरत ही बहती जाती है
हर बाधा से परे
प्रेम होता है..
उस जल की भांति
जो होता है पवित्र, निश्छल
खुद को कष्ट दे
संवारता है दूसरों को
प्रेम होता है..
उस शैवाल की भांति
जो पथरीली, बंजर जमीं को भी
हरा कर देता है
प्रेम होता है..
उस जल की भांति
जो होता है पवित्र, निश्छल
खुद को कष्ट दे
संवारता है दूसरों को
प्रेम होता है..
उस शैवाल की भांति
जो पथरीली, बंजर जमीं को भी
हरा कर देता है
प्रेम होता है..
एक गहना ऐसा
जिसे पहनकर मनुष्य
महसूस करता है खुद को
सबसे सुन्दर
प्रेम होता है..
या नहीं होता है
कभी पूरा या अधूरा
नहीं होता
प्रेम होता है,
नफरतों से बहुत बड़ा
बहुत विशाल
प्रेम होता है..
कुछ-कुछ ऐसा ही
कुछ-कुछ ऐसा ही
एक गहना ऐसा
जिसे पहनकर मनुष्य
महसूस करता है खुद को
सबसे सुन्दर
प्रेम होता है..
या नहीं होता है
कभी पूरा या अधूरा
नहीं होता
प्रेम होता है,
नफरतों से बहुत बड़ा
बहुत विशाल
प्रेम होता है..
कुछ-कुछ ऐसा ही
कुछ-कुछ ऐसा ही