मैं जीवन का हरीतिम आनंद
मैं प्रेम की पांखुड़ी
मैं लहर भातृत्व की
मैं ऊर्जा भरपूर
बह- बह जाती
छलक- छलक जाती
कुटिया से लेकर महलों तक
घाटों से लेकर बागानों तक
मेरे चरण पखारते सातों द्वीप
मेरी परिक्रमा करती आकाशगंगाएं
मुझे ब्रह्म कहो या मनुज
मैं ही सर्वव्याप्त हूँ
मेरे बिना न ज्ञान, न ध्यान, न सत्य
अहो! अहो! मैं अपनी ही पूजा करता अविरत
2.
मेरी दुनिया बाहर से छोटी
किंतु भीतर से बड़ी
यह विशाल है, असीम है
पर तुम इसे देख नहीं पाओगे,
महसूस भी नहीं कर पाओगे
तुम्हारे पास न वो आंखें हैं, न एहसास
तुम सिर्फ अनुमान लगाओगे
और घोषित कर दोगे नाकाफी मेरी दुनिया को
संकुचित है, दलदली है, अंधेरी है
तुम अपनी सफलता के बाटों से तौलोगे मुझे
तब मैं प्यार से तुम्हें देखूंगा
हँसूंगा कि देखो कितना श्रम कर रहे हो, मेरे मूल्यांकन में
जब तुम चले जाओगे
मैं भी अपने अंदर चला जाऊंगा
और इच्छाओं के पेड़ के नीचे बैठ
तुम्हारे लिये आंखें और एहसास मांगूंगा
3.
वहां अनंत लहरों का प्रवाह
समुद्र होने का भ्रम रच रहा था
जबकि वह एक झील ही थी
मैं समझ गया
जीवन में विस्तार का ही महत्व है
जो जितना विस्तृत हुआ, वह उतना विशाल हुआ
कोई फैल जाए गगन जैसा
तो सृष्टि उसके आंगन का फूल बन जाए
चमकने लगे सितारे उसके रोम- शिखों में
वह ब्रह्म- ऋचा रच दे
घोल दे रस चेतन मात्र के प्राणों में
कामना यही मेरे ह्रदय ने दी
कि हर मानव का यूं ही विस्तृत होता जाए
बन जाए कवि अनंत छंद- राग का
सत्य की गहन प्यास ही बनाती है
आदमी को आदमी
शेष तो कुछ भी नहीं है मूल्यवान
यही सनातन यात्रा है वेद की
इसी के पड़ाव हैं, धम्मपद, कुरान और बाईबिल
यही दोस्तोवस्की का क्राइम एंड पनिश्मेंट है
यही है खलील जिब्रान का प्रोफेट
और यही टैगोर की गीतांजलि
ईश्वर कोई एकरूप नहीं, न ही एक आयाम है
वह अनिर्वनीय है, परे हर खोज से
हर ऋषि- महर्षि अपने हिसाब से देता है उसका बोध
देता है सत्यार्थ प्रकाश / डिवाइन लाइफ / गुरुचरणेषु
हर नई पीढ़ी को नये अर्थों का उद्भावन करना होता है
समझना होता है, समय और संस्कारों के प्रभावों को
तब ही वह गहन सत्य कहीं- कहीं प्रदीप्त होता है