धरती से अम्बर तक फैलेगी नफ़रत की आग।
मानवता की ठोस नींव …
धरती से अम्बर तक फैलेगी नफ़रत की आग।
मानवता की ठोस नींव …
1.
कस्तूरी मृग सा मैं भटका
खुद को पहचान नहीं पाया।
जो …
१.
श्रांति रण में धैर्य के धनु-बाण
त्यागोगे धनञ्जय!
हार मानोगे धनञ्जय?…
१.
सुषुप्त है विहान आज सूर्य को पुकार लो
विभावरी ढली परन्तु …
१.
तुम कहीं दिखते नहीं जाने कहाँ हो,
ढूँढ आए हम क्षितिज …
धूप फिर पीली हुई है
हवाएँ फिर सर्द होकर देह को सिहरा …
मैं,बूढ़े बरगद की टहनी, झंझावात हिला देता
मेरे साए में बैठों को …
1-झंझावात हिला देता
मैं,बूढ़े बरगद की टहनी ,झंझावात हिला देता
मेरे साए …
१. मौन वीणा में मृदुल फिर तान जागी
मिल गया है शब्द …