किसान ओसाये हुए अनाज के
किसी भी भाग में कंकड़ नहीं छोड़ सकता
यह कहकर कि
इसे वह तो क्या खाएगा…
सच्चा प्रहरी लुट जाने के लिए
गांव अथवा नगर में नहीं छोड़ सकता
कोई एक अकेला घर
यह कहकर कि
यहां से उसे नहीं मिलती कभी कोई ‘बख्शीश…’
एक सच्चा वैद्य
किसी रुग्ण को तड़पने के लिए नहीं छोड़ सकता
यह कहकर कि
नहीं दे सकते उसके परिजन निर्धारित शुल्क
सच्चा गुरु शिष्य के लिए उड़ेल देता है
सारी विद्याएं
नहीं रखता अपने अंतस में
कुछ भी छिपाकर
कि यह मेरा ‘औरस’ नहीं…
एक न्यायकारी राजा ही
कह सकता है कि
समस्त प्रजा उसकी है …
एक उदार व्यक्ति ही गा सकता है
“सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया:”
और
“वसुधैव कुटुम्बकम् ” का गान …
एक मनुष्य के लिए
आदर्श होती है ‘मानवता’
न कि कोई किताब…!