कविता-कानन
मौत का अहसास
क्या तुम जानते हो बंधु
कि
ईश्वर प्रदत्त प्रकृति में
और मानव की
अपनी प्रकृति में
उतना ही अंतर है
जितना ज़मीन में
और आसमान में
ईश्वर प्रदत्त प्रकृति ने हमें
जल, थल और आकाश दिया
वन-उपवन, नदी, पर्वत और
कल-कल करते झरनों के बीच
जीवन का अहसास दिया
जीव-जंतु और पशुओं को
पत्थरों और मिट्टी की खोह में
तो पंछियों को पेड़-पौधों की
डगालों पर रहने को आवास दिया
सबको अपना-अपना
भोजन भी खास दिया
जीवन जीने के लिए
साफ-सुथरी हवा के मध्य
साँस लेने के लिए
पर्यावरण युक्त
एक सुंदर-सा वातावरण दिया
लेकिन
मानव की अपनी प्रकृति ने
ईश्वरीय प्रकृति को
तहस-नहस कर
अपने लिए
निर्मित किया
एक अप्राकृतिक संसार
जहाँ अब
खोह और कंदराएँ न होकर
कंक्रीट के जंगलों के मध्य
उग आए हैं
बड़ी-बड़ी मल्टियों के रूप में
देवदार के वृक्ष
जो ऑक्सीजन प्रदान नहीं करते
उगलते रहते हैं दिन-रात
कार्बन डाई ऑक्साइड
जहाँ
धुँआ उगलते
दौड़ते रहते हैं
छोटे-बड़े
व्यक्तिगत और व्यावसायिक वाहन
जहाँ विकास के नाम पर
अपनी ही मातृभूमि को
रौंद डाला है बड़े-बड़े अर्थ मूवर्स ने
खेत-खलिहानों को
निहारते-निहारते
जो आँखें कभी थकती नहीं थीं
अब दूर-दूर तक न देखकर
रहती हैं थकी-थकी अनमनी, उदास
जहाँ अब जीवन साँस नहीं लेता
मंडराता रहता है हर पल
केवल और केवल
मौत का अहसास
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जीवन का संदेश
क्या कभी किसी ने
सोचा था
कि मौत का वायरस कोरोना
महामारी के खौफ के वशीभूत
सम्पूर्ण मानव जाति को
अपने-अपने घरों में
कर देगा कैद
और
होकर स्वयं मुस्तैद
सम्पूर्ण वातावरण को
कर देगा प्रदूषण से मुक्त
जल-थल पावक
गगन समीरा को
कर देगा
विशुद्ध रूप से शुद्ध
सम्पूर्ण प्राकृतिक सौंदर्य के मध्य
साँस लेने के उपयुक्त
पर्यावरण से युक्त
प्रदूषण से मुक्त
क्या कभी
किसी ने सोचा था कि
मौत भी कभी
विकास के पहिए को
गतिहीन कर सकती है
हम सबको
सबसे विशेष
जीवन का संदेश
– रवि खण्डेलवाल