कविता-कानन
एक छोटी मछली को खा गई
एक छोटी मछली को
खा गई
एक बड़ी मछली
उस बड़ी मछली को
खा गई
और एक बड़ी मछली
उस मछली को भी खा गई
उससे भी एक बड़ी मछली!
अभी, समुद्र में
उस बड़ी मछली का ही राज है
यह समुद्र को पता है
कि
कई और भी हैं यहां
और वह बड़ी मछली भी
डरी हुई है
मन ही मन!
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एक भगत था
एक भगत था
जो कभी मारा गया
एक राजगुरु था
वह भी मारा गया
एक सुखदेव था
जो कि मारा गया
और एक गांधी भी था
जो मारा गया!
अभी, एक है मदन
एक सुखराम है
एक है इक़बाल
एक पीटर है
और एक
दिलीप भी है!
मैं सोच रहा हूँ
क्या ये सारे भी
एक दिन
मारे जाएंगे??
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बहुत कुछ बाकी है
बहुत कुछ बाकी है
मुझे कहने को
जो कुछ कहा गया है
बार-बार पहले भी
परन्तु
बहुत कुछ बाकी है
मुझे कहने को
हाँ, मैंने अभी तक
जो कुछ कहा नहीं
हाँ, हाँ!
मुझे कहना है
वह सब कुछ कहना है
हाँ, मुझे भी कहना है
जो कुछ कहा गया है
बार-बार पहले भी!
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बुद्धिजीवी
हम रोज़
सुबह से शाम तक
शाम से सोने तक
कभी-कभी तो सपनों में भी
पृथ्वी, देश, समाज
मनुष्य, पशु, पक्षी
जल, ज़मीन, आकाश
अमन, प्यार, मोहब्बत की
खूब चिंता करते हैं
जी हाँ! हम बुद्धिजीवी
खूब चिंता करते हैं
सच कहता हूँ
हम खूब चिंता करते हैं
बस, चिंता ही तो करते हैं
सुधार तो वह कर रहे होते हैं
जो हम जैसे बुद्धिजीवी नहीं होते!
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फिर से उठो
गिर गए?
फिर से उठो!
नहीं तो चलो
नहीं तो रेंगते हुए आगे बढ़ो
फिर भी नहीं, तो
तब तक चीखते रहो
चीखते रहो
चीखते रहो
जब तक कि कोई
तुम्हें सुन ना ले
और समझ ना ले कि
कम से कम
तुम्हें रेंगते हुए आगे बढ़ना था
तुम रेंग भी ना पाए!!
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यदि
यदि तुम एक पहाड़ भी होते
तो तुम्हें
तोड़ दिया जाता
यदि तुम एक जंगल भी होते
तो तुम्हें
काट दिया जाता
यदि तुम एक नदी भी होते
तो तुम्हें
बांध दिया जाता
यदि तुम हवा भी होते
तो तुम्हें
जहर से घोल दिया जाता
और हाँ!
तुम तो केवल एक मनुष्य हो
केवल एक मनुष्य हो
फिर चुप भी हो!
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प्रिय पाठक
तुम मुझे पढोगे
तुम इसे पढोगे
तुम उसे पढोगे
परन्तु, तुम पढ़ कर भी
वही समझोगे
जो तुम समझना चाहते थे
फिर तुम
वही करोगे
जो तुम करना चाहते हो!
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ख़बरी
एक मगरमच्छ को
एक शेर ने मार डाला
यह सुन कर
सारे जंगल वासी
ताली पीटने लगे
फिर ख़बरी ने
अपनी ग़लती सुधारते हुए कहा-
मुआफ़ करें
एक शेर को
एक मगरमच्छ ने मार डाला!
ताली पिट चुकी थी!
– लीलाकांत नाईक