रात के कोमल हृदय पर
रात के कोमल हृदय पर
दर्द किसने है उकेरा?
आँख के पानी से भीगे
चंद पन्ने बोलते हैं
शब्द मन की वेदना के
राज़ सारे खोलते हैं
इस जनम की डायरी पर
पीर ने डाला है डेरा
रात के कोमल हृदय पर
दर्द किसने है उकेरा?
तप्त है मन का मरूथल
मृग को है तृष्णा सताती
रेत के टीले यूँ दिखते
हाँफे जैसे प्यासी छाती
दूर जैसे मोरनी ने
मेह का हो नाम टेरा
रात के कोमल हृदय पर
दर्द किसने है उकेरा?
चाँद सबकुछ जानता है
बात किसकी मानता है
सांझ से लेकर सुबह तक
ख़ाक़ दर-दर छानता है
आसमाँ छिप जाये दिनभर
ढ़ूँढ़ ही लेता अँधेरा
रात के कोमल हृदय पर
दर्द किसने है उकेरा?
क्या निहारूँ मैं एकाकी
रात तो आधी है बाकी
तुम हो सोयी नींद में पर
तुम ही मेरे साथ जागी
हाथ थामो हाथ में अब
जल्द आयेगा सवेरा
रात के कोमल हृदय पर
दर्द किसने है उकेरा?
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आज है अधिकार साथी!
आज है अधिकार साथी!
आ चलें नभ के सफ़र पर,
लाएँ तारे अंक भर कर।
बादलों को सौंप आएँ,
अश्रुओं की धार साथी।
आज है अधिकार साथी!
चाह मन की कौन-सी है,
पीर दिल की मौन-सी है।
जो यहाँ संभव नहीं तो,
चल जगत के पार साथी।
आज है अधिकार साथी!
प्यास कुछ ना जानती है,
बूँद को पहचानती है।
माँगकर तृप्ति मिले ना,
बन स्वयं जलधार साथी।
आज है अधिकार साथी!
प्रीत की बेला सुहानी,
गढ़ रही कोई कहानी।
बाँच ले अपने नयन से,
मेरे मन का तार साथी!
आज है अधिकार साथी!
डूब इस दरिया के तल में,
जी उठें मरने के पल में।
आ कि मिलकर हम रचेंगे,
इक अलग संसार साथी!
आज है अधिकार साथी!
– के. पी. अनमोल