गीत-गंगा
संबंधों के मधुर गीत
संबंधों के मधुर गीत
आख़िर कैसे गाते।
बहुत पास से देख लिए
हैँ सब रिश्ते-नाते।।
जिससे की उम्मीद
कि मुझसे पूछे मेरा हाल।
जब क़रीब से गुज़रा
उसकी तेज हो गई चाल।
हम अपने मन की मजबूरी
किसको समझाते।।
अपना मतलब हल होने तक
बिछे रहे जो लोग।
सीना ताने खड़े हुए हैँ
यह कैसा सँयोग।
ज़हर भरी मुस्कान
फेंकते हैं आते-जाते।।
अपनी-अपनी पड़ी सभी को
खुलकर कौन मिले।
झुँझलाहट है हर चेहरे पर
झेले नहीँ झिले।
हिम्मत होती नहीँ कि खोलूँ
और नए खाते।।
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चादर रक्तसनी
देखो मत मेरे सपनों की
चादर रक्तसनी।
सोता हूँ मैं तकिए नीचे
रखकर नागफनी।।
जिसको अपना समझ बता दी
अपने मन की बात।
मुझे खोखला करने की
उसने कर दी शुरुआत।
जिन्हें हिफाज़त सौंपी थी
कर बैठे राहजनी।।
मैंने अपने सुखद पलों को
जिनमें बाँट दिया।
उनने उम्मीदों की हर
टहनी को छाँट दिया।
मेरे मन की पीड़ा अब तक
होती रही घनी।।
बदल गए सब अर्थ
प्यार है बस सौदेबाज़ी।
लेकिन ऐसे समझौतों को
हुआ न मैं राज़ी।
अक्सर ख़ुद से ही रहती है
मेरी तनातनी।।
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कहाँ-कहाँ भटके
मन का मीत मिले तो जी लें
एक बार डट के।
क्या बतलाएँ इस उलझन में
कहाँ-कहाँ भटके।
आकर्षक चेहरों ने मुझको
कितनी बार छला।
वो मतलबपरस्त निकला
जो दिखता रहा भला।
उम्मीदों पर भारी ताले
रहे सदा लटके।।
जो भी मिला उसे जी भरकर
मैंने प्यार किया।
बदले में नफ़रत ही पाई
फिर भी प्यार दिया।
दूर निकल जाने पर भी
कुछ लोग बहुत खटके।।
अपनी-अपनी निपटो
सारी बस्ती डूब रही।
इस दुनिया में रीति प्यार की
यह भी ख़ूब रही।
खड़े रहे अपनी-अपनी
दीवारों से सटके।।
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शेष दिल ही जानता है
आप सबके पूछने पर, कह दिया आनंद में हूँ
शेष दिल ही जानता है।
क्या कहें कितनी विषम हैं,
नित्य-प्रति की परिस्थितियाँ।
युद्ध लड़ता हूँ स्वयं से,
जी रहा हूँ विसंगतियाँ।
आप सबसे मुस्कुराकर, कह दिया आनंद में हूँ
शेष दिल ही जानता है।।
मुश्किलों में देख सबने,
कर लिया मुझसे किनारा।
लाख रोका, रुक न पाया,
बँट गया आँगन हमारा।
मामला निपटा बताकर, कह दिया आनंद में हूँ
शेष दिल ही जानता है।।
हल नहीं जिन उलझनों का,
टाल देना ही भला है।
दर्द सहकर मुस्कुराना,
है कठिन, लेकिन कला है।
दर्द सब अपने भुलाकर, कह दिया आनंद में हूँ
शेष दिल ही जानता है।।
– ज्ञानेन्द्र मोहन ज्ञान