गीत-गंगा
बालगीत- हवा
हम बच्चों-सी मस्त हवा।
रहती हरदम व्यस्त हवा।।
जीव-जंतु को जीवन देती,
पौधों को सहलाती है।
कलियों को दुलरा बहला कर,
सुन्दर फूल खिलाती है।
भँवरों जैसी मस्त हवा।
बच्चों-सी अलमस्त हवा।।
साँस इसी से हम लेते,
नहीं इसे पर कुछ देते।
झोंके मस्त हवाओं के,
रस जीवन में भर देते।
करती रहती गश्त हवा।
बच्चों-सी अलमस्त हवा।।
ठंडक पड़े तो सिहराती,
गर्मी में सुख दे जाती।
जब भी यह गुस्सा जाती,
आँधी बन कर धमकाती।
करती है तब त्रस्त हवा।
बच्चों-सी अलमस्त हवा।।
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बालगीत- कबूतर
पप्पू के घर पले कबूतर।
लाल सलेटी भूरे काले,
प्यारे-प्यारे भोले-भाले।
कोमल चिकने साफ़ रुई से,
सहमे-सहमे छुई-मुई से।
सदा गुटर-गूँ करे कबूतर।
पप्पू के घर पले कबूतर।।
कोदो सरसों खुद्दी खाते,
खा पी कर ऊँचे उड़ जाते।
दूर-दूर तक घूमा करते,
नील गगन को चूमा करते।
कभी नहीं घर तजे कबूतर।
पप्पू के घर पले कबूतर।।
पहले थे चिट्ठी ले जाते,
जिसे कहो उसको पहुँचाते।
पिंजरा कभी न इनको भाता,
उड़ते फिरते मौज मनाते।
मालिक से ही डरे कबूतर।
पप्पू के घर पले कबूतर।।
– डॉ. रंजना वर्मा