कविता-कानन
बोरसी
हमारी बोरसी खो गई है
हीटर, ब्लोअर की गर्मी में
सर्दियाते मौसम के इर्द-गिर्द
बैठकर बहुतेरे लोग गोलाई में
अब नहीं बतकुचनी में रमते हैं
न ही हँसते-गाते हैं
उतनी फुरसत कहाँ
रात ढले दफ़्तर से लौट
सुबह पिघलने के बाद
जो जग पाते हैं
नींद के झोंके में अब
उनका सहारा ब्लोअर, हीटर ही है
बोरसी के धुएँ, आग की दहकती चमक
और खटिया के नीचे घुसा दी गयी
गर्माहट को आज
देश निकाला दे दिया गया है
नहीं उठती आलुओं की सोंधी गंध
मकई की मीठी सुगंध
ग़ज़ब स्वाद बोरसी पर पके
मिठास भरे शक्करकंद का
ब्लोअर की कैद में
कैसे पक सकते आलू, शक्करकंद, मकई
रिश्तों की घेरेबंदी के बीच
सिझते-पकते मिठास बिखेरते
अनगिन रिश्तों की जुगलबंदी संग
हम तो अकेले रहने के आदी हो गये
पहले शहर, फिर अकेला घर
फिर कमरे की कैद
व्हिस्की की बोतल में
खुश-संतुष्ट हैं हम
अब नहीं उठता बोरसी का धुआँ
सबको साथ लिये हुए।
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पहाड़ से उतरती औरतें
देखा था कभी
सुदूर पहाड़ की
बेहद ख़ूबसूरत पहाड़ी औरतें
उनकी ललाई एवं लुनाई में
गया था खो आसक्त मन
पर एक अलग ही रूप देख
अब भी स्तब्ध हूँ
हिम की ख़ूबसूरती को
बसाए हुए दिल में
हिम पर खेल लौट रही थी
और सामने ही अपने अश्वों की
रास थामे दोनों हस्तों की कठोरता से
एक पहाड़ी औरत
पथरीली ढलाऊँ पर
उतरती गई झट धड़ाधड़
यायावरों के साथ
दोपहर तक के कठोर श्रम के बाद
पलक झपकते ओझल तीनों
बुला रहा था शायद उसे
कोई बीमार, वृद्ध, अशक्त
स्कूल से लौटा उसका लाल
या फिर खेतों की हरियाली
इंतज़ार सेब बागान का
अभी भी मेहनत के नाम
लिखने को बचा था
बहुत सारा काम
उस ख़ूबसूरत युवती का
अबकी जाना पहाड़ तो
उसका चेहरा, चेहरे की रंगत
लावण्य का पैमाना
उसकी देह न देखना
बस देखना केवल
जड़ सम कठोर पैर,
उसकी खुरदुरी हथेलियाँ
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छाती
नावों की छाती पर चढ़ के
तालाबों, सागरों की गहराई
जो हैं नापते
बड़े हिम्मतवाले होते हैं
लहरों पर लहरों को गिनना
आसान नहीं होता
उठते ज्वार-भाटों को
भेदना आगे बढ़ गले लगाना
है बहुत मुश्किल
घर में रोते बच्चे की रूलाई
पालित पशुओं का इंतज़ार
बाज़ार के आसरे छोड़ आने को
ज़िंदगी का नाम नहीं दिया करते
सागर की विशाल छाती को चीर
नौका की छाती पर सवार
काफी दिनों के लिए
या शायद हमेशा के लिए
सफ़र पर निकल जानेवालों की
छाती की चौड़ाई
नापी नहीं जा सकती
केवल और केवल
उसे सलाम किया जा सकता है।
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सैल्यूट वीरों को
क्या दे सकेगा कोई
आप लोगों को
सब अकिंंचन
दिन भर डाटे वर्दी
बूटों की कर सवारी
हाथों में भारी हथियार ले
जब चलते सीना ताने
समझा जाते जीवन के मायने
कि हथेली पर लेकर जान
वर्षा, पाला, बर्फबारी या घाम में
आप सकते हो चल हर घड़ी
बचाने को देश का मान-सम्मान
शौर्य और आपकी शहादत को
किया जा सकता मात्र सैल्यूट
अदब से
और क्या दे सकता है कोई
क्या सकेगा दे
आप लोगों की जवानी को
आपकी जान के बदले
सब अकिंचन
– अनिता रश्मि