कविता-कानन
थर्ड जेंडर विषय पर कुछ कविताएँ
तन भीतर मन
वह दिखने में पुरुष था
पर ख़ुद में
अनुभव करता था एक स्त्री
वह स्त्री नहीं था
पर अपने पुरुष तन में
टटोल नहीं पाता था पुरुष
उसके हाथ हमेशा आती थी
एक स्त्री
जब मैं देखता था
यहाँ-वहाँ
क्रूर संवेदनहीन पुरुषों को
दब्बू संस्कारित स्त्रियों को
तो न जाने क्यों
वही लगता था
सबसे पूर्ण।
*******************
उसके तन के भीतर
एक मन है
उसके मन से बहुत दूर
उसका तन है
उसके मन और तन के बीच
एक समाज भी है
जो उनके बीच ताने दूरी
खड़ा आज भी है।
******************
पूरा व्यक्तित्व लिए
हर चौक-चौराहे पर खड़ी वह
अपने अलग से दिखते
तन-मन और हाव-भाव से
आईना दिखाती है
सबको।
*******************
तन के भीतर
रहियो रे मन
जो लाँघेगा अपनी देहरी
हिल जाएगी दुनिया सारी
रूठेंगे खीझेंगे सब जन
पर बाँधेगा कब तक ये तन
तन के भीतर
रहियो रे मन।
*******************
कहो लोगो-
आशीर्वचन चाहिए
अपने नववधुओं
नवजातों के लिए
नहीं चाहिए
तो बस हमारा होना
कितनी दोगली दुनिया है तुम्हारी
है न!
*******************
तुम्हारी भाषा
भ्रमित हो जाती है
हमारे लिए
तुम्हारी संवेदना की धार
सूख जाती है
हम तक आते-आते
तुम्हारी दुनिया में
जगह नहीं बचती
हमारे टिकने के लिए
तुम-सा ही दिखते
लेकिन तुम में
जी नहीं सकते हम
कहो-
जाया है तुमने ही
तो फिर सब कुछ
छीन क्यों लिया है हमसे?
– आलोक कुमार मिश्रा