किंशुक का यौवन जब दमके,फागुन भी श्रृंगार करे ।
पिय -पलाश से अंतस छलके,फागुन भी श्रृंगार करे ।।
विपिन लालिमा से मन दहका, अगड़ाई लतिका भरती।
हृदय अग्नि में झुलस रही है, मुरझाती सहती रहती ।।
नेह भरे जब बिखरें मनके,फागुन भी श्रृंगार करे।
पिय -पलाश से अंतस छलके,फागुन भी श्रृंगार करे ।।
लाल-लाल टेसू रंगों से,काया भी आकाश बनी ।
अनुष्ठान में तन खिल जायें,पुलक रही है उर-तरनी ।।
रंगों का संगम भी बहके,फागुन भी श्रृंगार करे ।
पिय -पलाश से अंतस छलके,फागुन भी श्रृंगार करे ।।
हिय-पर्वत-कैलाश हुआ है,केसू से केसर-वसुधा ।
नयन दीप्त कर जगा रही है,तृप्त पुष्प से नयन क्षुधा ।।
आचमनी कर नयना झपके,फागुन भी श्रृंगार करे ।
पिय -पलाश से अंतस छलके,फागुन भी श्रृंगार करे ।।
चमक रहा है गमक रहा है,सुमन पलाशित मधुवन भी ।
प्रेम प्रतीक्षा पूर्ण करेगा,नायक बनता ऋतु- धन भी ।।
कनक-सुमन से कानन धधके, फागुन भी श्रृंगार करे ।
पिय -पलाश से अंतस छलके,फागुन भी श्रृंगार करे ।।