भीतर बसे गाँव
की बाहरी सड़क से गुजरते वक्त
मिलता है सन्नाटा, समाधिस्थ तरु और तटस्थ हवा ,
तभी अचानक दिख जाता है
सरकारी स्कूल ,
जर्जर , कराहता, जीर्णशींन
कुछ बच्चे संलग्न है,
बचपने के क्रिया कलापों में ,
एक दूसरे के पीछे भागने में,
छुपन-छुपाई खेलने में,
यह देख ढहती दीवारें सुकून में है
अपने अंतिम अवस्था में ,
नवनिहालों के चेहरे प्रफुल्लित है ,
किन्तु भविष्य उदासीन,
मेरी आँखें खोज रही हैं शिक्षक,
उस परिसर में जो शुरू होते ही ख़त्म हो गया ,
दीवारों से टकराकर लौटती आँखें सोच में हैं ,
उधर बच्चे खुश हैं ,
उन्हें मायने मिल गया है स्कूल आने का ,
रोज़ दलिया खाने का ,
आँकड़े पूरे हो रहे हैं ,
शिक्षा का प्रतिशत बढ़ रहा हैं,
शिक्षा का स्तर धँस रहा है
रजिस्टर बता रहा है
उपस्थिति पूरी है
….सड़क पर फिर सन्नाटा है