यादों के झरोखे से खिलती, खुलती झरती हँसी हमें रोते हुओं को भी अचानक मुस्कान में तब्दील कर देती है। मुन्ना भैया को मिलाकर हमारे घरों के आँगन के चारों ओर बने दस मकान थे।उन्हें मकान कहा जाना उचित नहीं है वैसे क्योंकि मकान मिट्टी ,चूने ,लकड़ी,ईंटों को मिलाकर बना दो और खड़ा हो जाता है एक मकान! अब वह कितना बड़ा या छोटा है, यह महत्वपूर्ण नहीं होता। महत्वपूर्ण होता है, उसका घर में परिवर्तित होना। यह प्रेम की गली है जिसमें लड़ाई-झगड़ों, तू-तू,मैं-मैं के बावज़ूद प्रेम कभी वृत्त में नहीं रह सकता क्योंकि उसका स्वभाव ही वृत्त में बँधा रहना नहीं है।
मकान, चाहे वो कोठी हो या फिर बंगला या फिर लंबा चौड़ा महल बनकर मुँह लटकाए खड़े रहते हैं जैसे अकेलेपन की सज़ा भोगनी हो लेकिन उधर दो/चार कमरों का साधारण सा दिखने वाला,जिसमें से दूर से ही खिलखिलाने की सुगंध आती है, वातावरण में गीत भर जाता है और लगता है घर जिसमें से नन्हे-मुन्नों की किलकारियों के साथ बुज़ुर्गों की पोपली मुस्कान से झरता शुभाशीष अपने आप ही सुंदर कहानी कह जाता है।
कभी संवाद चुपके से होते हैं तो कभी खूब शोर-गुल्ला करके,कभी ‘आँखों ही आँखों में इशारे’ तो कभी ‘तू चल मैं आया’|कभी पाँच रुपए के बुढ़िया के बालों की डंडी से किसी के लिए कम रह जाती है तो कभी किसी के लिए जान-बूझकर कम लाई जाती है क्योंकि पिछली बार उसके साथ भी तो ऐसा ही किया था उसके साथ फिर वह क्यों न करे या उसे आखिर उसकी बदमाशी की सज़ा क्यों न दी जाए? उसके बावज़ूद भी आँखों में,बातों में,लड़ाई में,प्रेम की डोरी तो बंधी ही रहती है।
रात को चाँदी सी रातें और दिन में गर्मी से लथपथ लेकिन खिलखिलाहट के सोने भरे दिन !रात को नानी की कहानी;
‘माँ ,कह एक कहानी’
;बेटा,समझ लिया क्या तूने
मुझको अपनी नानी?
किसको याद नहीं होंगी आज तक भी जब हमारी उम्र के लोग उन सबको याद करके मुस्काने लगते हैं ,हमसे अगली पीढ़ी को भी सुनकर मज़ा आता है और नन्ही पीढ़ी के लिए बेशक यह एक मजेदार सी रटने वाली की नन्ही सी कहानी है लेकिन आनंदित तो वह होती ही है।
दरअसल घर लोगों से,उनकी खिलखिलाहट से, उनकी चीं-चीं,चूँ-चूँ से मिलकर बनता है।उसके सदस्यों के रूठने-मनाने से मिलकर बनता है। ईश्वर ने हम सबके भीतर हास्य,रुदन,करुणा सब कुछ ही तो यथास्थान सजाकर भेजा है ,हम सब इससे परिचित हैं और इसी कारण जीवन को सुंदर प्रकार से व्यतीत कर रहे हैं। यही कारण है कि प्रेम किसी सीमा में,किसी वृत्त में कैद नहीं रह सकता। हम हँसते हैं, खिलखिलाते हैं और प्रेम पर ठप्पा लगाते हैं और जीवन में आस्था रख पाते हैं।
हँसता हुआ चेहरा देखकर सबके चेहरे पर मुस्कान आ ही जाती है क्योंकि मुस्कान ही जीवन में आनंद भरने का आधार है और यह प्रेम के होने से ही संभव है। वैसे भी हम सब परिचित हैं कि हँसी संक्रामक होती है। हँसना एक ऐसा सकारात्मक भाव है जो हमारे मन मस्तिष्क में बहुत तेजी से प्रतिक्रिया करता है। जब हम किसी को खिलखिलाकर हँसते हुए देखते हैं तो हमारा मस्तिष्क अनायास ही चेहरे की मांसपेशियों को हँसने के लिए विवश कर देता है। सोचकर देखें, भला प्रेम-विहीन अथवा वृत्त में जकड़ा हुआ इंसान भला क्या हँसेगा?हँसना शारीरिक ओर मानसिक बीमारियों से निजात पाने का सर्वोत्तम उपाय है। मनुष्य के जीवन मे हँसी से अधिक मूल्यवान और कुछ भी नहीं।
आज के समय में कव्वालियाँ ज़रा कम ही प्रचलन में हाइन किन्तु जब हम छोटे थे तब हमारे स्कूलों में जैसे और कॉमपीटीशन्स होते थे ऐसे ही कव्वाली का भी होता था।
मैंने भी लिखी थी उस समय एक कव्वाली ,मैंने ज़रूर किसी प्रेरणा से लिखी होगी। बोल थे ;
आप भी हँसते जाइए ,हमको भी हँसाते जाइए।
खिलखिलाते दाँत मोती से भी दिखाते जाइए।।जब हम समग्र प्रेममय होते हैं, हँसी में होते हैं तो अहंकार गायब हो जाता है। जो मानसिक विकार हमारे मन की शांति और चेहरे की मुस्कराहट को नष्ट करते हैं, वे हैं दंभ, अभिमान, क्रोध और भय। यदि हम करुणा और प्रेम अपने भीतर विकसित करें, तो इन तमाम विकारों से निजात पाना बहुत आसान है। इसीलिए खुल कर हँसिये, मुस्कुराइये अपने तन और मन को स्वस्थ रखिये। क्योंकि पूरी सृष्टि में सिर्फ मनुष्य ही मुस्कुरा सकता है।