ईश्वर के लिखे में
उसने कभी हस्तक्षेप न किया
न ही हठयोग करने की जिद
ईश्वर की उदारता पर
बार बार हुई कृतज्ञ
किन्तु आँसुओं से बनाये
न जाने कितने नमक के पहाड़
उसने उस ऊंचे मलबे की ओर देखा
जहाँ , क्षत विक्षत टूटे फटे
पंखों के ढेर पड़े थे
स्वप्नों को चुप्पी की आँच में
पकाना उसने सीख लिया
किन्तु अपने पंखों को सींचती रही
गढ़ती रही पूरी धरती स्वाभिमान की
उसने देखा अपने पंखों की तरफ
जहाँ तारामंडल
सूर्य चंद्र झिलमिला रहे थे
उसकी पलकें स्वाभिमान की आँच में
गुलाबी हो गईं
और होंठ तनिक वक्र
अपने जगमगाते पंखों को समेट
उड़ चली उन अनगिनत तारों
और चाँद की ओर
असंभव को संभव करने