मार्ग से परिचय नहीं है
धुंध केवल धुंध दिखती, रास्ते मगरूर से हैं
यूँ ही बैठे हम घरों में, आसमानों की खबर ले
क्या बताएं स्वयं को, हम भला यूँ दूर क्यूँ हैं?
हर दिशा पर आज पहरे, हम ही उसके दोषी ठहरे
किन्तु न समझेंगे जब तक, खुद ही हम न जाएँ गहरे
आज तन्हाई का मंज़र, हर हृदय बेनूर क्यूँ हैं?
बंदगी हम कर सके न, बस शिकायत ही करी हैं
इस हृदय की पोटली में, बस निराशा ही भरी हैं
सहमे पल हैं, सहमी धड़कन, फिर भी सब यूँ क्रूर क्यूँ हैं?
आज भी ताज़ा हवा है, आज भी हैं चाँद -तारे
आज भी सूरज सभी को, कर रहा है कुछ इशारे
किन्तु फिर भी न समझ पाए, भला मज़बूर क्यूँ हैं?
मार्ग से परिचय नहीं है, अंधकारों में अड़े हैं
झोलियों में भरी नफ़रत, जान के लाले पड़े हैं
आस और निराश की गलियों में भी मगरूर क्यूँ हैं?