अमीबा
‘अमीबा’ हो गयी हैं
मरती हुई
संवेदनाएँ
पोखर, गड्ढे, तालाबों के
थमे हुए पानी में
बजबजाती फिर रही हैं
अमीबा
कुंकुआती आवाज़ वाले हॉर्न
दौड़ती भागती मेट्रो टैक्सियों के जाल में
बिना रुके बिना थके
कंकड़ पत्थर के जंगलों में
लौटने को आतुर
ये ज़िंदगी
प्रोटोप्लास्म के ढेर में सिमटी
परजीवियों की तरह जीते हुए
अपने एक-कोशिकीय जीवन को
आकार बदलती ज़िंदगी से
करते रहे हैं रूबरू
जी रहे हैं
कूपमंडूकता संजोये
जैसे प्रतिकूल मौसम में, शैल में स्वयं को बचाए
अमीबा सी हो गयी हैं न संवेदनाएँ
प्लास्टिक ‘ओह! आह!’ की
निकालते हैं आवाज़
बहा देते हैं जल धाराएँ
जैसे अमीबा ने आगे बढ़ने को
निकाले हों कूटपाद
समय और मौसम के अनुसार
परिवर्तित होती संवेदनाएँ
लोटपोट होतीं, विचरतीं
एक के मरने पर अट्टहास
तो एक के मरने पर
आँसू के दरिया बहाते
बढ़ती हैं ताउम्र
अमीबा सी संवेदनाएँ
एक पल रोते
दूसरे ही पल हँस कर बता देते हैं
अमीबा से टुकड़ों में बंट कर भी
कई केन्द्र्कों वाली परजीविता के साथ
जी रही है संवेदनाएँ
विलुप्तप्राय संवेदनाओं
शब्दों के मकड़जाल से
उलझकर
छलछलाती हुई
नमन/वंदन/आरआईपी कहते
इतरा कर चल पड़ती हैं
नए प्रतिरूप की तरफ़
वाकई
अमीबा हो चुकी हैं
संवेदनाएँ!
(अमीबा एककोशकीय सूक्ष्म प्रजीव है जो गड्ढो नालों तालाबों में पाया जाता है)
**********************
बेटी की अभिलाषा
अनगढ़ आकार में ही तो थी
जब कुछ महीनों बाद
पनपी थी माँ के गर्भ में,
बस ऐसे समझो
जैसे बलबलाते हुए
ह्रदय का टुकड़ा दिख रहा हो
डॉक्टर को
जब कर रहा था वो
हार्ट की बाईपास सर्जरी
थी मांस के एक छोटे टुकड़े सी ही तो
अस्थि मज्जा तक
नहीं बन पाई थी
पर विज्ञान का अद्भुत चमत्कार कहूँ
या कहूँ जन्म से पहले
बलात्कार
तभी तो तुम्हारे कहने पर
की थी कोशिश पहचान लेने की
डॉक्टर रूपी टेक्नीशियन ने,
कह दिया था
सोनोग्राफी कर के
लक्ष्मी का रूप पनपी है
और बस कुछ पल की ही तो देर थी
आश्चर्य !
मृत ज्वालामुखी के क्रेटर से भी
निकल पड़ता है लावा
सुर्ख लाल
ऐसा ही कुछ हुआ
नहीं कांपी धरती
पर बारिश भी तो हुई नहीं
बिना जले वनस्पति के
रेगिस्तान बन गयी मिटटी
एक अनचीन्हे रूप को
जिंदाबाद कहने के बदले
बिना कहे,
कर दिया मुर्दाबाद!
लो मैंने भी तो नहीं लिखा सुसाइड नोट
पर फिर भी कहूँगी
ये थी आत्महत्या
आखिर कैसे अपने पिता को
घोषित करूँ हत्यारा
बस कुछ तो नहीं हुआ
कुछ रक्त धारा बही
कुछ मांस के थक्के
गिरे कट कट कर
और मिट गया वजूद
लेकिन याद रखना
मेरा वजूद नहीं मिट पायेगा ऐसे भी
क्योंकि मेरी वजह से ही है
तुम्हारा वजूद
चलो छोडो
मैंने कहा न
पापा, अगला स्पर्म हो बेटे का
मेरी अंतिम अभिलाषा
तुम्हारी ख़ुशी के लिए
अब तो खुश हो न!
याद रखना
देवियाँ अभिशप्त नहीं हो सकती!
*****************
खून का दबाव व मिठास
जी रहे हैं या यूँ कहें कि जी रहे थे
ढेरों परेशानियों संग
थी कुछ खुशियाँ भी हमारे हिस्से
जिनको सतरंगी नजरों के साथ
हमने महसूस कर
बिखेरी खिलखिलाहटें
कुछ अहमियत रखते अपनों के लिए
हम चमकती बिंदिया ही रहे
उनके चौड़े माथे की
इन्ही बीतते हुए समयों में
कुछ खूबियाँ ढूंढ कर सहेजी भी
कभी-कभी गुनगुनाते हुए
ढेरों कामों को निपटाया
तो, डायरियों में
कुछ आड़े-तिरछे शब्दों को जमा कर
लिख डाली थी कई सारी कवितायेँ
जिंदगी चली जा रही थी
चले जा रहे थे हम भी
सफ़र-हमसफ़र के छाँव तले
पर तभी
जिंदगी अपनी कार्यकुशलता के दवाब तले
कब कुलबुलाने लगी
कब रक्तवाहिनियों में बहते रक्त ने
दीवारों पर डाला दबाव
अंदाजा तक नहीं लगा
इन्ही कुछ समयों में
हुआ कुछ अलग सा परिवर्तन
क्योंकि
ताजिंदगी अपने मीठे स्वभाव के लिए जाने गए
पर शायद इस स्वभाव को
पता नहीं कब
बहा दिया अपनी ही धमनियों में
और वहां भी बहने लगी मिठास
दौड़ने लगी चीटियाँ रक्त के साथ
अंततः
फिर एक रोज
बैठे थे हरे केबिन में
स्टेथोस्कोप के साथ मुस्कुराते हुए
डॉक्टर ने
स्फाइगनोमैनोमीटर पर नजर अटकाए हुए
कर दी घोषणा कि
बढ़ा है ब्लड प्रेशर
बढ़ गयी है मिठास आपके रक्त में
और पर्ची का बांया कोना
135/105 के साथ बढे हुए
पीपी फास्टिंग के साथ चिढ़ा रहा था हमें
बदल चुकी ज़िन्दगी में
ढेर सारी आशंकाओं के साथ प्राथमिकताएँ भी
पीड़ा और खौफ़ की पुड़िया
चुपके से बंधी मुट्ठी के बीच
उंगलियों की झिर्रियों से लगी झांकने
डॉक्टर की हिदायतें व
परहेज़ की लंबी फेहरिस्त
मानो जीवन का नया सूत्र थमा
हाथ पकड़ उजाले में ले जा रही
माथे पर पसीने के बूँद
पसीजे हाथों से सहेजे
आहिस्ता से पर्स के अंदर वाली तह में दबा
इनडेपामाइड और एमिकोलन की पत्तियों से
हवा दी अपने चेहरे को
फिर होंठो के कोनों से
मुस्कुराते हुए अपने से अपनों को देखा
और धीरे से कहा
बस इतना आश्वस्त करो
गर मुस्कुराते हुए हमें झेलो
तो झेल लेंगे इन
बेवजह के दुश्मनों को भी
जो दोस्त बन बैठे हैं
देख लेना, अगले सप्ताह
जब निकलेगा रक्त उंगली के पोर से
तो उसमेंनहीं होगी
मिठास
और न ही
माथे पर छमकेगा पसीना
रक्तचाप की वजह से
अब सारा गुस्सा
पीड़ाएँ हो जायेंगी धराशायी
बस हौले से हथेली को
दबा कर कह देना
‘आल इज वेल’
और फिर हम डूब जाएंगे
अपनी मुस्कुराहटों संग
अपनी ही खास दुनिया में
आखिर इतना तो सच है न कि
बीपी शुगर से
ज्यादा अहमियत रखतें हैं हम
मानते हो न ऐसा !