धूप फिर पीली हुई है
हवाएँ फिर सर्द होकर देह को सिहरा रही है
कुहेमा भी शाम से हीं झूमती लहरा रही है
रूठ बैठी नींद रातों की परत पर फिर तड़पकर
रंग ख्वाबों से बिछड़कर डूबती उतरा रही है
नर्म सपनों के सफ़र की राह पथरीली हुई है.
धूप फिर पीली हुई है.
शीत ने सहरा में घुसकर खूब मौसम को छला है
बिन रुके पारा फिसलकर शून्य से नीचे चला है
धुंध आधी दोपहर हीं बढ़ गयी पगडंडियों पर
चीरता है हड्डियों को ठण्ड या कोई बला है
ज़िन्दगी से रूह की कुछ डोर फिर ढीली हुई है.
धूप फिर पीली हुई है.
खोमचे वालों ने फिर भी हालतों को है संभाला
गर्म छोले नर्म पूरी आग से झटपट उतारा
गिन रहा पैसों को ताकि घर में भी चूल्हा जलेगा
फिर से अंदाजे लगाता जोड़ कर चिल्लर दुबारा
हवाओं के नश्तरों से शिराएँ नीली हुई है.
धूप फिर पीली हुई है.
जनवरी ये आरज़ू है नरमियों को साथ लाना
रूत गुलाबी मखमली सी उर्मियों को साथ लाना
ये नया जो साल आए रूह की तस्कीन लाए
मुलायम सी मोहब्बत की गर्मियों को साथ लाना
याद कर पिछली क़यामत आँख फिर गीली हुई है.
धूप फिर पीली हुई है.