1.
पृथ्वी जानती है
अविष्कार की नदी में
गले तक डूब चुकी पृथ्वी को
कभी भी लिए डूब सकती है
मनुष्य की तरक्की की चाहत!
वर्चस्व के दो घूँट और शराब
कर सकते हैं अंदर तक
आदमी की समूची
तंत्रिका प्रणाली को नष्ट!
पृथ्वी के कलेजे पर लिखी
समय की किताब में दर्ज हैं
मानवीय जीवन और इनमें आये
बदलावों के तमाम अध्याय और ग़म
पृथ्वी जानती है-
तुम्हारे चंद अविष्कारों की संख्या
इसकी कोख़ से विलुप्त हुई
इसकी औलादों से है कितना कम
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2.
कवि बनने का शौक़ नही रखता!
दुनिया मुझे मेरी खिड़की पर
बैठा नहीं देख सकती
न ही मैं देख सकता हूँ
अपनी खिड़की पर बैठ इसे
आसमा चमगादड़ की तरह
आकाशगंगा में लटका रह सकता है
और धरती पसरी किसी टीले पर
अज़गर की माफ़िक
इतिहास की किताबों में
इतनी जगह नहीं
कि वो शामिल कर सकें अपने अंदर
तमाम महान व्यक्तित्वों
औऱ उनके कर्मों को
आदमी सड़कों पर कहीं अधिक
खूबसूरत होता है
किताबों की अपेक्षा
औऱ, मैं नहीं जानता तुम
किस तरह की जिंदगी चाहते हो,
पर मैं अपने आदमी को बेचकर
कोई कवि बनने का शौक़ नही रखता!