तुम्हें शोभा नहीं देता
तुम्हें शोभा नहीं देता
कि तुम आँसू बहाओ
आँखें फोड़कर
तुमने बेच दी नदी चील को
और मगरमच्छ को चिनार
तीक्ष्ण चोंच और पैनी नज़र में
मछलियों ने सीख लिया है
मेंढक बनना
जबड़ों में आ गया है सम्पूर्ण आकाश ।
तुम्हें शोभा नहीं देता
कि तुम शांत रहो
अशांति फैलाकर
तुमने संगीत में भर दी है
गोलियों की धुन
और कानों में खनक रहे हैं
विस्फोट के गीत,
सुर में सजा दिया है
माँ का करुण रूद ।
तुम्हें शोभा नहीं देता
कि तुम सुर्खियाँ बटोरो
हत्याकांड कर
तुमने शवों को बनाया खाद
और लहू को पानी
उपज आये है ऐसे पेड़
जिनकी टहनियों में गाड़ा लहू है
और फूलों में बारूद
फल में पत्थर और
बीज में विस्फोट
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मुझे खेद है
मुझे खेद है उनके प्रति
जिनको कुत्तों से दोस्ती है
चील कौओं के जलसों से
जो होते है संबोधित,
जिनको गीदड़ में दिखता है
क्रांति का आह्वान
जिनको लोमड़ी में दिखता है
विकास …
विदेश की गौरियों में
जो पालते है
कश्मीरी संस्कृति के सुनहरे स्वप्न।
मुझे खेद है
उनके प्रति जो साँपों को
पिलाते हैं दूध में घुला विष
जो देते हैं प्रवचन
डसने के हुनर सीखने का,
धर्म की सीढ़ियों पर चलकर
जो बांटते हैं अशांति का प्रसाद।
मुझे खेद है
उनके प्रति जो करते हैं
नसबंदी की बातें
जिनको जनसंख्या की
शिकायत से ज़ुकाम है,
जो बेचते हैं मानवता के मर्म को
एक हरे नोट में
बिकता है सम्पूर्ण गुरु ज्ञान।