
दीपावली दहलीज़ पर है। लेकिन कहीं आप हर्षोल्लास के इस उत्सव को मनाने में हिचकिचा तो नहीं रहे? अवसाद में डूबे रहने के तो तमाम कारण हमारे आसपास मौजूद हैं - महंगाई, राजनीतिक छींटाकशी, धार्मिक उन्माद, कोरोना का भय इत्यादि। तो क्या करें, दीवाली रस्मी तौर पर मनाकर छोड़ दें? पटाखे भी बहस का हिस्सा बन चुके हैं। यदि चेहरे की मुस्कान भी छोड़ दी तो मान लीजिए कि हमारी खुशियों का गला हम ही घोंटेंगे!
दीवाली की पहली शर्त तो यही है न- अपनी खुशी को महसूस करना, अपने आसपास के माहौल को खुशनुमा बना देना। मैं ये नहीं कहूंगी कि सकारात्मकता के नाम पर हम दैनंदिनी की चुनौतियों को भूल जाएं! मानती हूँ कि हमारे पास वो सब कुछ है, जिसके बारे में सोचकर दुखी हुआ जा सकता है, तो क्या करें? खुशियों को तिलांजलि दे दें, या ये मा...
प्रीति अज्ञात