संपादकीय
मनुष्य बने रहने के लिए मन और मेधा का सामंजस्य आवश्यक है
‘हस्ताक्षर’ के प्रिय पाठको!
मानव जीवन की सार्थकता मनुष्य बने रहने में है और मनुष्य बने रहने के लिए मन और मेधा का सामंजस्य आवश्यक है। मन भाव शक्ति का स्रोत है तो मेधा नव नवोन्मेष अन्वेषणों की जननी है। यह अन्वेषण सूक्ष्म और स्थूल दोनों ही स्तरों पर अभीष्ट हैं; आवश्यकता इसकी जननी है तो यह मानव की जिज्ञासा का पोषक है। प्रत्येक क्षण हम नवीन संधान करते रहें और बढ़ते रहें, मानव से महामानव होने की यात्रा पर। 21वीं सदी तक प्रत्येक क्षेत्र में सतत हो रहे नित नये शोध, इसी यात्रा का प्रमाण हैं।
मानव समाज के लिए साहित्यिक शोध अपना अक्षुण्य महत्व रखते हैं, इसमें दो दिशाएँ संभव हैं- प्रथम, किसी प्रच्छन्न, अज्ञात साहित्य या तथ्य को प्रा...
डॉ. शीताभ शर्मा